कहानियाँ जो बच्चो के मनोबल को बढाती है और उससे उनके मानसिक विकास
मे वृद्धि होती है। हम Baccho ki kahani मे
हर बार ऐसी ही कहानी पेश करते है जिससे बच्चों को अच्छी प्रेरणा मिल सके। हमारी तो
संस्कृति मे अक्सर बाल अवस्था मे बच्चों को दादी, नानी या उनकी माताऐं उन्हे Bacchon
ki kahaniyan acchi acchi सुनाती है।
कुत्ते और गधे की दौड(Small Night Stories For Kids)
एक बार एक जंगल मे एक कुत्ता और गधा दोनो साथी थे। एक दिन उन्हे सूचना मिली कि आगे वाले जंगल का सिंहासन खाली पडा है वहाँ के सभी जानवर अपने लिए एक राजा ढूंढ रहे है उनका मानना है कि उनका नया राजा दूसरे जंगल का होना चाहिये क्योंकि वह सभी से अन्जान होगा और वह किसी भी जानवर के प्रति अपना व पराया का फर्क नही करेगा। उसके लिए सभी जानवर एक समान होंगे। उन्होने सोचा क्यों ना हम वह सिंहासन संभाल ले मगर उनमे बहस चल पडी की उस सिंहासन के लिए उनमे से उत्तम कौन है। तभी एक बूढा बन्दर वहाँ उनके पास आया उसने देखा कि वह दोनो आपस मे बहस कर रहे है। वह बोला- अरे, भैया क्या बात है दोनो इतने खास मित्र हो मगर फिर भी आपस मे क्यों लड रहे हो।
उन दोनो ने उसे अपनी पूरी बात बताई। बूढा बन्दर बोला- बस, इतनी सी बात है क्यों ना तुम दोनो
आपस मे दौड लगा लो जो तुममे से पहले वहाँ पंहुचेगा वही जीतेगा और जीतने वाला ही
श्रेष्ठ होगा। उन्होने उसकी बात मान ली। कुत्ता बहुत खुश हुआ क्योंकि दौड मे
कुत्ता हमेशा ही गधे से आगे रहता है।
Read more also:-
दोनो ने दौड लगानी चालू की। कुत्ता बहुत तेजी से दौड रहा था
मगर कुछ ही देर बाद कुछ अन्जान कुत्तो ने उसे घेर लिया उन्हे लगा कि यह नया कुत्ता
हमारी बस्ती मे कहाँ से आ गया। वह कुत्ता किसी तरह उनसे पीछा छुडवा कर अपना रास्ता
बदल कर आगे निकला तो फिर कुछ देर बाद एक नयी जगह पहुँचा तो वहाँ के कुत्तो ने उसे
घेर लिया फिर से कुत्ते ने किसी तरह उन कुत्तो से पीछा छुडवा कर आगे बढा।
अब हर थोडी दूरी पर कुत्ते उसे अन्जान समझ कर घेर लेते और
वह अपना रास्ता बदल बदल कर आगे बढता क्योंकि कुत्तो के क्षेत्र का दायरा सीमित
होता है वह अपने क्षेत्र से बाहर नही निकलते। अब किसी तरह मुश्किल से वह उस जंगल
तक पहुँचा तो उसने देखा कि उसका खास साथी गधा वहाँ सिंहासन पर बडी ठाठ से बैठा है
और बाकी सभी जानवर उसकी जय जयकार कर रहे हैं। उन्होने उस गधे का अपना महाराज घोषित
कर दिया है।
सीखः- अक्सर हमारे रास्तों की रूकावट हमारे अपने ही बनते है
गैरों को तो सिर्फ बदनाम किया
जाता हैं।
एक समय की बात है एक तोते वाला था वह हर गली, गाँव व शहर मे तोते बेचा करता था। उसके
पास एक खास तोता था जिसे उसने काफी समय लगाकर कुछ शब्द बोलना सीखा दिया था। वह
तोते बेचने शहर के बाजार मे गया। उसे वहाँ एक व्यापारी मिला। उसने तोते वाले से
तोते का दाम पूछा तो उसने उसका दाम बीस रूपये बताया। सभी तोते हरे रंग के थे मगर
वह खास किस्म का तोता हरे के साथ पीले रंग का भी था।
व्यापारी बोला यह तोता अलग रंग का कैसे है। तोते वाला बोला- साहब, इसीलिए तो यह मेरा पालतू तोता है और यह बिकाऊ नही है। यह सुनकर व्यापारी ने कहा- कि इसमे ऐसी क्या बात है कि यह तुम्हारा पालतू कैसे हुआ सभी तुम्हारे ही पालतु है। तोते वाला बोला- साहब आप समझे नही यह हर सवाल का जवाब देता है जब मै घर मे अकेला होता हूँ तो मुझसे बातें करता है।
यह सुनकर व्यापारी ने सोचा क्यों ना मै इसे खरीद लूं जब
दूकान मे या घर मे मै अकेला रहूंगा तो यह मुझसे भी बातें करेगा।
उस व्यापारी ने वह तोता खरीदने की जिद्द की। मगर तोते वाला
जानबूझ कर दाम बढाने के चक्कर मे आना कानी कर रहा था। बहुत देर आग्रह करने के बाद व्यापारी ने तोते
वाले को राजी कर लिया। तोते वाले ने उसे दाम 100 रूपये बताया। व्यापारी यह दाम सुन कर चौंक गया वह बोला- क्या, सौ रूपये मगर इन सब तोतो के दाम तो बीस रूपये है।
तोते वाले ने कहा- साहब, यही तो मै कह रहा हूँ कि आप यह
तोते खरीद लिजिए। यह मेरा खास किस्म का तोता है और मैने कई महीने मेहनत करके इसे
बोलना सीखाया है इसी लिए इसका दाम 100 रूपये है।
व्यापारी ने सोचा- तोते वाला सही कह रहा है। इसने कई महीनों
मेहनत करके इसे बोलना सीखाया है इसकी कीमत तो सौ रूपये हो सकती हैं।
उसने सौ रूपये मे सौदा पक्का कर लिया मगर वह पहले तोते की
परीक्षा लेना चाहता था। उसने तोते से कहा- क्या तुम बोलना जानते हो।
तोता बोला- इसमे क्या शक है।
फिर उसने तोते से पूछा- क्या यह तुम्हारा मालिक है।
तोता बोला- इसमे क्या शक है।
फिर उसने तोते से पूछा- मै तुम्हे तुम्हारे मालिक से पूरे
सौ रूपये मे खरीद रहा हूँ क्या तुम मेरे साथ मेरे घर चलने को तैयार हो।
तोता बोला- इसमे क्या शक है।
अब व्यापारी को सन्तुष्टि हो गयी। उसने तोते वाले के हाथ मे
सौ रूपये का नोट थमाया और उस तोते को लेकर अपने घर की ओर निकल गया। उसका घर कोसो
दूर था जब वह अपने घर पहुँचा तो सभी तोता देखकर हेरान हो गये।
उसने तोते को नये पिंजरे मे रखा। उसने तोते से प्रश्न पूछना
चालू किया मगर उसके हर प्रश्न का वह एक ही जवाब देता कि इसमे क्या हैं।
उसने फिर उससे पूछा- क्या तुम यह कुछ ही शब्द बोलना जानते
हो।
तोता बोला- इसमे क्या शक है।
उसने गुस्सा होते हुए उस तोते से पूछा- क्या मै मूर्ख हूँ
जो तुम्हे सौ रूपये मे खरीद कर लाया हूँ।
तोता पुनः बोला- इसमे क्या सन्देह है।
उस आदमी को अपनी मूर्खता पर बडा क्रोध आया। वह बार बार
गुस्से भरी नजरों से तोते की तरफ देख रहा था मगर इसमे उस बेचारे तोते का क्या दोष
था वह तो उतना ही बोल सकता था जितना कि उसके मालिक ने उसे सिखाया था।
सीखः- इन्सान को कोई भी कार्य जल्दबाजी मे नही करना चाहिए
हर काम को खूब सोच समझ कर करना चाहिए। सोच समझ कर किया गया कार्य कभी व्यर्थ नही
जाता था।
एक बार एक शहर मे एक बूढा व्यक्ति सडक के किनारे छोटा से
तम्बू बना कर रहता था वह अत्यन्त गरीब था उसके परिवार जनों ने उसे घर से बाहर
निकाल दिया था। वह दिन मे कोई छोटी मोटी मजदूरी करके अपना पेट पालता था। उसे संसार
मे किसी चीज का मोह नही था अगर कभी बदनसीबी से रोटी नही भी मिल पाती तो भी वह
भगवान से शिकयत नही करता था। वह बस भगवान का मन मे स्मरण लिए जीवन गुजार रहा था।
एक दिन वह सडक के किनारे सो रहा था। उस दिन रात को सर्दी पड
रही थी मगर उसके पास एक फटी पुरानी पतली सी कम्बल थी जिसे ओढ कर वह सो रहा था उसे
रात को सर्दी लग रही थी मगर वह सिकुड कर सो गया। इतने मे वहाँ से एक सेठ जी गुजरे
जो कि शहर से बाहर यात्रा करके पुनः घर की तरफ लौट रहे थे।
उन्होने बूढे बाबा को सडक के किनारे सर्दी मे सोते हुए देखा
उन्हे समझने मे देरी नही हुई कि वह सर्दी के मारे सिसक रहा है। सेठ जी को उस पर
बहुत दया आ रही थी मगर उनके पास उसे ओढाने के लिए कुछ नही था उनके पास एक कम्बल थी
जो बडी ही मुलायम और मंहगी थी जिसे वह दूसरे शहर से खरीद कर लाये थे। अभी तो
उन्होने उसे खोला भी नही था। उन्हे उस बूढे व्यक्ति पर तरस आ रहा था सोचा कि क्यों
ना मे यह कम्बल इस व्यक्ति को दे दू इससे इस गरीब व्यक्ति की सर्दी कट जायेगी मै
कभी ओर दूसरी कम्बल ले लूंगा।
उसने वह कम्बल बूढे व्यक्ति को ओढा दी और सन्तुष्ट होकर
अपने घर की ओर रवाना हो गया। बूढा व्यक्ति गहरी नीन्द मे था उसे पता नही चला की
किसी ने उसे कम्बल दी है बस उसे अहसास हुआ कि अब उसे सर्दी लगना बन्द हो गया है
थोडी देर बाद उसने देखा कि किसी नेक इन्सान ने उसे एक सुन्दर, मुलायम कम्बल ओढाई है। जब सुबह
सूर्य उगने के बाद भी वह सोता रहा तो राह पर चलते फिरते एक चोर की नजर उस पर पडी।
उस मुलायम कम्बल को देखते ही उसकी नियत खराब हो गयी वह समझ गया कि यह कम्बल बहुत
महंगी है और एक दम नई भी है वह उसे अच्छे रूपयों मे बेच सकता है। उसने आव देखा ना
ताव तुरन्त झपटा मार कर वह कम्बल छीन ली और भाग गया। सभी शोर मचाने लगे.... चोर...चोर...चोर...
पकडो...पकडो...पकडो।
वह बूढा आदमी समझ गया कि किसी ने उसकी कम्बल चूरा ली है मगर
वह आराम से उठ कर बैठ गया तो आसपास के सभी लोगो ने उसे कहा कि बाबा वह चोर आपकी
कम्बल लेकर भाग गया मगर आप है कि उसे पकडने की जगह एक दम शान्त होकर बैठ गये। वह
अब अपना झोला उठा कर दूसरे रास्ते की ओर जाने लगा फिर से एक आदमी ने कहा- बाबा, आप
गलत दिशा मे जा रहे है वह उस तरफ दौड कर गया है।
बुढा व्यक्ति बोला कि मुझे पता नही कि वह किस दिशा मे गया
है मगर मुझे यह पता है वह मुझे कहाँ मिलेगा मै आज तो नही मगर एक दिन वहाँ पहुँच
जाऊंगा और वह भी एक दिन वहाँ जरूर आयेगा।
वहाँ खडे दूसरे व्यक्ति ने पूछा- मगर, आप कहाँ कि बात कर
रहे है और वह वहाँ आपके पास क्यों आयेगा। बूढे व्यक्ति ने सामने की ओर इशारा किया
जहाँ कुछ लोग एक मृत व्यक्ति की अरथी लेकर जा रहे थे अर्थात उसके कहने का मतलब था
कि मै उसका शमशान मे इन्तजार करूंगा क्यों की एक ना एक दिन इन्सान को वहाँ जाना ही
होता है अर्थात मरने के बाद।
सीखः- मृत्यु के पश्चात् सभी के पाप व पुण्य का बहिखाता
देखा जाता है चाहे वह कितना भी अमीर हो या कितना भी गरीब, चाहे वह राजा हो या रंक।
बहुत पुराने समय की बात है एक नगर मे एक बहुत ही अमीर सेठ
रहता था जिसका नाम अमीरचन्द था। सेठ अमीरचन्द की ख्याति पूरे नगर मे प्रसिद्ध थी।
सभी उससे जरूरत के समय मदद माँगने आते थे वह कभी किसी को अपने दरवाजे से खाली हाथ
नही निकालता था।
समय अनुसार सेठ की उम्र ढलने लगी। उसके दो पुत्र थे नेकराम
और अनेकराम। सेठ ने अपना उत्तराधिकारी चुनने का फैसला कर लिया था मगर उसे समझ नही
आ रहा था कि वह किस पुत्र को अपना उत्तराधिकारी बनाकर अपनी गद्दी पर बिठाये जो
उसके व्यापार कारोबार की बागडोर सम्भाल सके।
उसने अपने दोनो पुत्रों की परीक्षा लेनी चाही जो उसकी
परीक्षा मे खरा उतरेगा वहीं उसका उत्तराधिकारी बनेगा।
उसने अपने दोनो पुत्रों को दस-दस रूपये दे दिये जो कि उस
समय एक बडी रकम हुआ करती थी। साथ मे दोनो के लिए एक एक संगमरमर का बडा आलिशान महल
बनवा कर दे दिया और उसने अपने दोनो पुत्र नेकराम व अनेकराम से कहा कि जो इन दस
रूपयों से अपने अपने महल को भर देगा वही मेरा उत्तराधिकारी होगा अर्थात दस रूपयों
से ऐसी वस्तु खरीद कर लाओं जिससे यह महल पूरा भर जायें।
दोनो भाई सोच मे पड गये। अनेकराम ने अपना दिमाग लगाया और
कुडे-कचरें वाले को बुलाया और कहा तुम अपना पूरा कचरा मेरे घर मे डाल दिया करो मै
तुम्हे पूरे दस रूपये दूंगा। कचरे वाला भी चक्कर मे पड गया कि कैसा मूर्ख इन्सान
है अपने इतने आलिशान संगमरमर के महल को कचरे से भरना चाहता है। मगर उसे तो अपना
काम करना था उसे उस कार्य की बडी रकम रही थी। उसने उसके कहे अनुसार पूरा महल कचरे
से भर दिया।
सेठ जब अपने पुत्रों के महल का परीक्षण करने आया तो उसने
अपने बडे पुत्र अनेकराम का महल देखा तो उन्होने उसकी करतूत देख कर अपना माथा पीट
लिया। मन ही मन सोचने लगा कि यह क्या मेरा उत्तराधिकारी बनेगा। मैने कितनी मेहनत
से धन कमाकर यह संगमरमर का महल बनाया और इसने इसे अपनी मूर्खता से कचरे से भर
दिया।
वह अब दूसरे पुत्र नेकराम के महल के परीक्षण के लिया गया
उसने देखा कि उसका पूरा घर रोशनी से चमक रहा है। असल मे नेकराम ने अपना दिमाग
लगाया उसे समझ मे आया कि दस रूपये मे ऐसी एक ही चीज आ सकती है जिससे पूरा महल भर
जाये वह है रोशनी। उसने दो रूपयें के खूब सारे दीपक खरीदे और तीन रूपयें का तेल और
पूरे महल मे खूब सारें दीपक जला दीये कुछ ही देर में पूरा महल रोशनी से जगमगाने
लगा। जब सेठ जी उसके पास आये तो उसने अपना महल दिखाया और उनके पैर छूकर उन्हे जो
पाँच रूपये बचें थे वह वापस कर दिये यह देख सेठ अमीरचन्द बहुत खुश हुए।
सेठ को अपना उत्तराधिकारी मिल गया था और उसने अपने दूसरे
पुत्र नेकराम को अपना उत्तराधिकारी घोषित किया।
सीख:- सुयोग्य पुत्र कोडी से भी सोना बना सकता है और मुर्ख यानी कुयोग्य पुत्र सोने को भी कोडी बना सकता है।
यह भी पढ़े:-
- किस्मत का तमाशा
- जीवन के अन्तिम क्षण
- मानव और उसका सवाल
- महात्मा का उपकार
- अडवा का पराक्रम
- मन का संतुलन ही मुक्ति का मार्ग है
- संगति का असर
0 टिप्पणियाँ