3 short motivational story ….
मै आपके समक्ष जो मोटिवेशनल स्टोरी पेश कर रहा हूँ मुझे उम्मीद है कि वह आपके जीवन
में लाभदायक सिद्ध होगी आपको इससे जरूर कुछ सीखने को मिलेगा।
१.सेवा का फल
२.तेरी सेवा कच्ची है।
३.पाँच पुत्र
सेवा का फल
आप अगर मन्दिर जाते है
उसमे रामजी के साथ हनुमान जी भी दिखाई देते है। एक बात यहाँ समझने वाली है कि राम जी के सेवा सबने की मगर हनुमान
जी ही हमेशा साथ मे क्यों रहे। आज हनुमान जी के अनेक मन्दिर है मगर विभीषण का कोई मन्दिर
नहीं। ऐसा लगता है कि हनुमान जी सेवा निस्वार्थ थी। कभी उन्होने सेवा का बदला नही चाहा।
कभी भगवान राम से कुछ माँगा नही। जैसे सुग्रीव था उसने राम जी से कहा कि बाली मेरा
दुश्मन है। आप उसको मार देना। विभीषण ने भी रावण के मरने के बाद लंका का राज्य पा लिया।
ऐसे अनेक उदाहरण हैं जहाँ सभी ने अपनी भक्ति के बदले कुछ ना कुछ जरूर माँग लिया हो।
मगर निस्वार्थ भक्त की सेवा भी निस्वार्थ थी
और हनुमान जी को निस्वार्थ सेवा का फल मिला और भगवान राम जी के भक्त हनुमान जी ही क्यों
पूजे जाते है। उसका कारण है निस्वार्थ भावना। एक आदमी ने मन्दिर बनवाया। अब मन्दिर
बनाया तो उसका नाम क्या हो यह पूछने के लिये पंडितों को बुलाया गया। मन्दिर बनवाने
वाले ने कहा ऐसा कुछ उपाय करो कि मेरा आधा नाम मन्दिर के नाम से जुड़़ जाये ताकि लोग
मुझे याद करे। यह समाज स्वार्थी ही है। ऐसा नाम रख दिया जो कि इतिहास मे मिलता ही नहीं।
संसार एक पैसा अगर चढ़़ाता है तो तीनों लोकों का सुख माँग लेता है। बदले की भावना से
दिया दान सौदा होता है। जैसे दूकानदार सौदा देता है। पैसे लेता है किस बात का अहसान।
सफर करो टिकट लो यह तरीका अदला-बदली का होता है मकान दो किराया लो।
मगर कोई धर्मशाला बनाता है बदला नही चाहता
तो ध्रुव दान कहलाता है। संसार मे दान की महिमा भी है कोई ठण्डा जल पिलाता है तो कोई
आँखो का केम्प लगाता है मगर एक बात अगर उसके पीछे नाम की महिमा हो नाम चाहता हो तो
भी नामी तो कहला सकता है वो संसार के लिए होता है।
एक आदमी ने उधार दान कर दिया और उधार लोटाया
नही। क्या वो दान कहलायेगा। सेवा वो होनी चाहिए जो निष्फल भाव से की गयी हो।
तेरी सेवा कच्ची है।
एक आदमी अपने गुरू के
पास गया और बोला गुरूजी मै इस जिन्दगी मे बेहद दुखी हूँ मै अपना ध्यान भगवान की भक्ति
और लोगो की सेवा में लगाना चाहता हूँ मै चाहता हूँ मेरा अगला जन्म ठीक हो उसके लिए
मै कुछ करना चाहता हूँ। गुरूजी ने कहा तो ठीक है तुम जैसा चाहते हो वैसा ही करना मानव
की सेवा करो। किसी गाँव मे जाओ बेसहारा लोगो की सेवा करो। उसने कहा ठीक है उसने ऐसा
ही किया उसने एक गाँव चुन लिया वहाँ बेसहारा लोगो की बहुत सेवा की बहुत समय सेवा मे बीताने के बाद वह अपने घर चला गया। दो साल
बाद उसने सोचा कि मै उसी गाँव मे जाकर देखूँ वो लोग कैसे है। वह गाँव मे सबके पास गया
किसी ने उसे पानी तक नही पूछा। वो बहुत निराश हुआ सोचा कि मैने इस गाँव वालो की इतनी
सेवा की मगर उन्होने मुझे पानी तक नही पूछा। वो बहुत निराश हुआ और एक दिन गुरूजी के
पास गया बोला-गुरूजी जिस गाँव की मैने इतनी सेवा की वहाँ किसी ने मुझे पानी तक नही
पूछा। गुरू जी बोले- अभी तेरी सेवा कच्ची है तूने इसलिए सेवा की थी कि लोग तुझे पानी
पिलाएं तेरी प्रशंसा करे तेरा गुणगान करे तेरी बढाई करे फिर तो यह सौदा हो गया सेवा तो वह होती है जो
बिना स्वार्थ की जाए।
नीतिकार लिखता है इन्सान
तू सौदेबाजी मत कर। जैसे ईश्वर सबको समान रूप् मे सब कुछ देता है तू भी वैसा ही कर
तभी शायद कुछ उद्धार हो सकेगा। बदले की भावना से दिया दान नहीं सौदा बन जाता है। सौदेबाजी
परमात्मा को पसन्द नही है इसीलिए निस्वार्थ भावना में संसार भ्रमण कर।
पाँच पुत्र
एक समय की बात है। एक
आदमी के पाँच पु़त्र थे। वह आदमी अपने हर पुत्र से कहता कि तुम बुढ़़ापा तुम ले लो।
एक लड़के को बुलाया और कहा कि मै बूढ़ा नही होना चाहता। मेरा बुढ़ापा तुम ले लो। उसने
कहा ऐसा कैसे हो सकता है फिर दूसरे को बुलाया और कहा मेरा बुढ़ापा तुम ले लो तो उसने
भी मना कर दिया ऐसे चार लड़को ने मना कर दिया। जो सबसे छोटा लड़का था उसने कहा पिता जी
अगर आपका बुढ़ापा लिया जा सकता है तो मै तैयार हूँ। समय बीतता गया और सही समय आने पर
उस आदमी ने अपने छोटे पु़त्र को अपना वारिस बना दिया। नीतिकार कहते है उसका बुढापा
कौन घटा सकता था। उसने तो ऐसा प्रश्न रख दिया वह देखना चाहता था उसका कौनसा पु़त्र
उसकी परीक्षा मे खरा उतरता है उसका छोटा बेटा समझदार था और पिता से प्रेम भी करता था
उन्हे सुखी देखना चाहता था अर्थात वह झट से मान गया और आखिर मे वह ही घर का सबसे धनवान
व्यक्ति बना।
जो लोग सिर्फ आज के बारे मे सोचते है वो
तकलीफ में भी हो सकते है और जो लोग दूर दृष्टी की
सोच रखते है उनका जीवन सुखमय हो सकता है।
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