Top 10 motivation story ….
मै आपके समक्ष जो मोटिवेशनल स्टोरी पेश कर रहा हूँ मुझे उम्मीद है कि वह आपके जीवन
में लाभदायक सिद्ध होगी आपको इससे जरूर कुछ सीखने को मिलेगा।
1. मिट्टी के बर्तन
2. चोर बाप और बेटा
3. यह भी खूब कही
4. पोल खुल गई
5. शनि का ग्रह
6. सहयोग से सफलता
7. बहुरानी की नादानी
8. धन्य है बिचली को
9. स्वार्थी बहुएँ
10. राजा का
न्याय
1. मिट्टी के बर्तन
एक परिवार
मे अच्छी आमदनी थी। घर मे बुढे माता पिता, बेटा, बहू और उनका पोता रहता था। पोता रोज देखता कि
जिस बर्तन मे सब खाना खाते है उनमे दादा-दादी को खाना नही दिया जाता था बल्कि उनके
लिए अलग ही एक मिट्टी के बर्तन मे खाना दिया जाता था। पोता हमेशा देखता कि दादा-दादी
के साथ घर के सदस्य जैसा व्यवहार नही किया जाता था। वह उनके मिट्टी के बर्तनो को सँभाल
कर रखता था। एक बार वह मिट्टी के बर्तन इक्टठे कर रहा था उसके पिता ने उसे देख लिया।
पिता ने बेटे से कहा तुम यह क्या कर रहे हो। पोते ने कहा मै यह बर्तन सम्भाल रहा हूँ
यह बर्तन आपके काम आयेंगे। आप जब बुढे हो जाओगे तो दादा-दादी की तरह आपको भी मे इन्ही
बर्तनो मे खाना दिया करूंगा। यह सुनकर पिता को अपनी गलती का अहसास हुआ
नीतिकार कहता है जैसा बीज होगा, फल भी वैसा ही होगा। सब लोग एक जैसे नही होते
मगर आज की दुनियाँ मे ऐसा कई जगह हो रहा है। हर इन्सान चाहता है कि मै ज्यादा से ज्यादा
सुख लूं। एक बात और देखने मे आ रही है कि नीचे की पीढ़ी का ध्यान ज्यादा रखा जाता है।
बुजूर्ग माता पिता की तरफ ध्यान कम दिया जा रहा है। आने वाली पीढ़ी को सभी चाहते है
मगर जाने वाले को कम चाहते है। इसीलिए बुढापे के लिए संसारी माध्यम से जरूर कुछ बचा
कर रखे ताकि बुढापा सही कट जाये।
2. चोर बाप
और बेटा
एक बार
की बात है बाप और बेटा दोनों चोरी करने निकले। बेटे का चोरी का पहला दिन था। बाप ने
कहा वो जो घर है हमे उसमे चोरी करनी है। बेटे ने देखा कि वहाँ पर बडी चहल पहल है, रोशनी है। बाप बोला हाँ मै उस घर मे बीसों बार
चोरी कर चुका हूँ। बेटे ने विचार किया बीसों बार चोरी करने पर भी यहाँ सब खुश है और
हमारे घर बत्ती तक नहीं। बेटा बोला--ठहरे पिताजी मै तो चोरी नही करूंगा। आपने बीस बार
चोरी की उनका कुछ बिगडा नही और हमारा कुछ बना नही, मै तो वही काम करूंगा जो यह लोग करते है। मै चोरी
नही करूंगा। नीतीकार कहता है चोर के घर दीपक नहीं जलता। चोर को दिन अच्छा नहीं लगता।
चोर को निषाचर कहा जाता है निषाचर मतलब रात को जागने वाले, चोर रात का इन्तजार करता है, चोर के पैर नही होते।
बेटे ने कहा जिस घर मे बीस दफा चोरी हुई वहाँ सब ठीक ठाक है। हमारे घर अन्धेरा है।
उसको समझ आ गया संसार मे अच्छा वो ही है जो नेक कमाई करे। कहते है नेक कमाई मे ही बरकत
होती है। चोरी का माल गजों से नही लाठियों से नापा जाता है। चोर का माल बडा चोर खरीद
लेता है। चोर की रिश्तेदारी भी चोर से ही ज्यादातर होती है। बेटा उस बात को समझ गया
और रास्ता बदल लिया। जब किसी को समझ आ जाए। जब जागो तभी सवेरा कहलाता है।
3. यह भी
खूब कही
एक बहुत
बडा कंजूस सेठ था। कुछ मित्र बहुत दिनो से उसके पीछे पडे हुए थे कि एक दिन तो तुम्हे
भोजन खिलाना ही पडेगा। वह सदा टालता रहता था पर एक दिन बाध्य होकर उसे स्वीकृति देनी
ही पडी। सारे लोग घर मे आ बैठे। सबकी थालियों मे अच्छी-अच्छी मिठाईयाँ परोसी गई। यह
खडा खडा सबके ऊपर पंखा झेल रहा था। खानेवाले भोजन की सराहना कर रहे थे। हर बार इसका
तो यही उत्तर था कि बन्दे की तो बस हवा हवा है बाकि सारा तो आपके चरणो का प्रसाद है।
जब मित्र लोग भोजन के लिए अन्दर आये थे तभी कंजूस
सेठ का भाई उन सबकी जूतियाँ सामने वाले हलवाई के यहाँ गिरवी रख आया उसी के बदले हलवाई यह मिठाईयाँ दे
रहा था। जब ये भोजन से निवृत होकर बाहर आये और अपनी जूतियाँ यथास्थान नही मिलने पर
सभी इधर उधर देखने लगे वे महाशय भेद खोलते
हुए बोले-मैने तो पहले ही कहा था कि बन्दे की तो बस हवा हवा है बाकि सब तो आपके चरणों
का प्रसाद है यानि आप सबकी जूतियाँ सामने वाले हलवाई के पास गिरवी रखी हुई है। सब अपने
अपने हिस्से के पैसे देकर अपनी-अपनी जूतियाँ छुडा ले।
सारे देखते ही रहे। सभी के मुँह पर यही चर्चा
थी कि बन्दे की तो बस हवा हवा है।
4. पोल खुल
गई
एक समय
की बात है एक दम्पति मे ठाकुर और उसकी ठकुराइन रहते थे। ठकुराइन अपने ठाकुर से हमेशा
कहती थी कि वह जब भी किसी काम के सिलसिले मे दूसरे गाँव जाते है तो उसका मन नही लगता
और उसे खाना पीना कुछ भी अच्छा नही लगता। जब तक वह उनके सामने न हों तो धान का एक दाना
भी उसके गले से नही उतरता अर्थात वह ठाकुर साहब की याद मे भूखी ही रहती है। एक दिन
की बात है ठाकुर ने अपनी ठकुराइन के प्यार की परीक्षा लेने का विचार किया। दूसरे दिन
वह गाँव जाने के बहाने घोडे पर सवार होकर घर से निकल पडा। शाम का समय अपने किसी मित्र
के घर घोडा बाँधकर अपने घर मे आकर छिप गया। दूसरे दिन ठकुराइन ने दासी से कहा- ठाकुर
गया गाम, मने नी
भावे धान। तब दासी ने कहा एक गन्ना तो चूस
लीजिए। ठकुराइन ने दासी द्वारा लाया हुआ एक काला गन्ना चूसा। फिर वहीं पंक्तियाँ बार
बार दुहरार्ह- ठाकुर गया गाम, मने नी
भावे धान। दासी ने अब खीचडी और बाटी की थाली परोसी। फिर वही पंक्तियाँ दोहराते हुए
खीचडी और बाटी भी खा लिए। अन्त मे दासी ने मक्का के फूल बनाये ठकुराइन
ने फिर वहीं पंक्तियाँ दोहराते हुए मक्का के फूल भी खाये। फिर भी वहीं पंक्तियाँ दोहराती
गयी कि ठाकुर गया गाम, मने नी
भावे धान।
ठाकुर यह सब देख व सुन रहा था। वह एकदम प्रकट
हुआ। उन्हे अचानक सामने आते देखकर ठकुराइन चकित हो गई। उसने पूछा- आप इतनी जल्दी कैसे
लौट आये तब ठाकुर ने कहा- मै घोडे पर बैठकर जा रहा था
पर मार्ग मे एक काला साँप दिखाई दिया। वह गन्ने के जितना लम्बा था और खीचडी मे घी की
तरह चल रहा था। वह बाटी की तरह फन उठाकर ऐसी ध्वनि कर रहा था मानो मक्का के फूल गिर
रहे हो इसीलिए आगे न जाकर मै वहीं से लौट आया। ठकुराइन
समझ गई कि उसके नकली प्रेम की पोल खुल गई है। उसने ठाकुर से क्षमा-याचना की और प्रतिज्ञा
की कि आगे से ऐसा झूठा प्रेम का दिखावा कभी नही करेगी।
5. शनि का
ग्रह
एक आदमी
ज्योतिषी के पास चला गया बोला मेरा हाथ देखकर बताओ कि मेरा भाग्य कैसा है। ज्योतिषी
ने हाथ देखा बोला तेरे ऊपर शनि का ग्रह है। उसने कहा मुझे क्या करना चाहिए वो बोला
ग्रह को शांत करना पडेगा इसके लिए ढ़ाई सौ रूपये का खर्चा है मंत्र
जाप करने होंगे। वह आदमी बोला मेरे पास तो ढ़ाई सौ रूपये नही है तो ज्योतिषी ने कहा
चलो आपको कुछ कम कर देते है। आप हमें डेढ़ सौ रूपये दे देना। वह आदमी बोला मेरे पास
इतने भी रूपये नही है। ज्योतिषी ने कहा चलो आप सौ रूपये दे देना। वह आदमी बोला मेरे
पास तो सौ रूपये नही है। ज्योतिषी ने कहा चलो आप पच्चास रूपये दे देना। वह आदमी बोला
मेरे पास तो पच्चास रूपये नही है। ज्योतिषी ने कहा चलो आप इक्कीस रूपये ही दे देना।
वह आदमी बोला मेरे पास तो इक्कीस रूपये नही है।
फिर ज्योतिषी
ने कहा चलो आप इग्यारह रूपये ही दे देना उसी से काम चला लेंगे। वह आदमी बोला मेरे पास
तो इग्यारह रूपये भी नही है। अब ज्योतिषी बोला चलो सब छोडों तुम सिर्फ एक रूपया ही
दे देना। वह आदमी बोला मगर मेरे पास तो एक रूपया भी नही है। आखिर मे ज्योतिषी बोला
फिर तेरा शनि क्या बिगाड लेगा तू मौज कर। शनि तो उसका ही बिगाड़ता है जो धनवान होता
है। नीतिकार कहता है ऐ इन्सान तू सीधा साधा काम कर सीधा जा सीधा आ। इधर उधर ताक झाँक
मत कर अगर तू ताक झाँक करेगा तो तू फँस जायेगा। तेरा धर्म क्या है तू उसका पालन कर
बाकि सब काम ईश्वर पर छोड दे। ईश्वर सबका पालन हार है सारी सृष्टि उसी के विधान मे
चलती है तू फिक्र मत कर अपना काम ईमानदारी से कर वो ही सबसे श्रेष्ठ रास्ता है।
6. सहयोग
से सफलता
हम यदि
दूसरो की मदद करते है तो दूसरे भी हमारी मदद करते है। परस्पर सहयोग से सबका काम पूरा
हो जाता है।
एक राजा ने एक बार ब्रह्म भोज का आयोजन किया।
सौ डेढ़ सौ लोग चुने गये तथा उन विद्धान ब्राहम्णो को भोजन के लिए आमंत्रित किया गया।
राजा ने आमने सामने दो कतारों मे सबको बिठा दिया। वह उनकी परीक्षा लेना चाहता था इसीलिए
उसने प्रत्येक ब्राहम्ण के दोनों हाथों की कोहनियों पर बाँस का एक एक टुकडा मजबूती
से बँधवा दिया। फिर थालियाँ परोस दी गई। सभी विद्धान सोच मे पड गये कि भोजन कैसे किया
जाये। हाथ तो बँधे होने के कारण मुड नही सकते थे अचानक एक विद्धान को गीता का श्लोक
याद आ गया।
देवान् भावयतानेन ते देवा भावयन्तु नः।
परस्परं भावयन्तःश्रेयः परम वाप्यस्यथ
।।
हम देवों को प्रसन्न करें और देव हमे प्रसन्न
करें। परस्पर प्रसन्न करते हुए आप सब परम कल्याण प्राप्त करें।
उस विद्धान के सुझाव के अनुसार हर ब्राहम्ण अपने
सामने बैठे दूसरे ब्राहम्ण को अपने हाथ से भोजन खिलाने लगा। इस प्रकार परस्पर सहयोग
से सबने अपना अपना पेट भर लिया।
7. बहुरानी
की नादानी
किसी सेठ
के घर नववधू आयी। धनी मानी सेठ की लडकी होने की वजह से घरेलू कार्य करने मे विशेष दक्षता
हाँसिल नही थी। उसके होते उसकी बूढ़ी सास भोजन बनाये यह वह
नही चाहती थी। अतः अपना कार्य समझ कर वह रसोई मे जा बैठी। मगर सास उसकी स्थिति से अनभिज्ञ
नही थी वह जानती थी कि उसे खाना बनाना नही आता है। वह बोली- बहू तुम रहने दो मै ही
भोजन बना लूँगी। बहू ने नम्रता से कहा-यह कैसे हो सकता है आप खाना बनाये और मै बैठी
बैठी देखती रहूँ। सास ने कहा- नही, ऐसी कोई बात नही है मै जानती हूँ तूझे भोजन
बनाने का काम कम पडा होगा।
बहू बोली-यह आपने कैसे जान लिया कि मै भोजन
बनाना नही जानती हूँ खैर इस दोष को भी तो मिटाना है ऐसा कहकर बहू भोजन
बनाने मे जुट गई। आटे मे पानी डाला तो पानी की अधिकता से रोटी बन सके आटा ऐसा
नही रहा। यह सब देखकर गंभीर होकर सास बोली-अब तो इससे रोटी नही बन पायेगी। तुम ऐसा
करो थोडा और पानी डाल लो और इसका घोल बना लो ताकि उसके पूए बना लिये जायेंगे। पानी
डालना था कम मगर डाल दिया ज्यादा। घोल भी नही रहा अब तो फेंकने लायक तरल पेय ही रह
गया। तब सास ने कहा- मैने पहले ही कहा था पर तू
नही मानी। अब तो इसको बाहर फेंक दो और नया आटा घोलो। बहू जब फेंकने खिडकी के पास जाने
लगी। तब सास ने कहा- बहू जरा देखकर किसी भले
आदमी को देखकर फेंकना। बुद्धि की वसूमति उस बहू ने सोचा- इसको किसी भले आदमी पर फेंकना
है। यह सोचकर उधर से एक व्यक्ति जो सूट बूट पहन कर नौकरी के लिए रवाना हुआ ही था उस
पर वह पानी डाल दिया। वह पानी से तर-बतर होकर गालियाँ बकने लगा। तब वहाँ अनेक व्यक्ति
इक्कट्ठे हो गये। सबके सामने अब तो बहूरानी की समझदारी स्पष्ट हो गयी।
8. धन्य
है बिचली को
एक पहाडी
पर भगवान का मन्दिर था। वहाँ दिनभर लोग दर्शन के लिए आते रहते थे। मन्दिर तक पँहुचने
के लिए पहाडी पर सीढ़ियाँ बनी हुई थी।
एक बुजूर्ग साधू मन्दिर मे जाने के लिए सीढ़ियाँ
चढ़ने लगा परन्तु बुढापे की वजह से वह जल्दी ही थक गया और गुनगुनाने लगा- न अगली को
न पिछली को धन्य-धन्य है बिचली को।
उसी समय ऊपर से तीन औरतें दर्शन करके नीचे आ रही
थी। अगली और पिछली की अपेक्षा बिचली औरत अधिक सुन्दर थी। उसने सोचा कि यह साधु मुझे
लक्ष्य करके ही इस प्रकार गा रहा है। उसे क्रोध आ गया। उसने एक चप्पल निकाल कर साधु
की खूब पीटाई कर दी। तमाशा देखने के लिए वहाँ भीड इकट्ठी हो गयी। लोगों ने जब साधू
से पूछा तो उसने कहा कि बचपन और बुढ़़ापे के बीच मे जवानी होती है। मै अपनी जवानी को
याद करके कह रहा था कि वह मौजूद होती तो मै
शीघ्र ही न थकता और अब तक ऊपर चढ़़ कर दर्शन करके लौट आता। बिचली अवस्था जवानी को धन्य
है जिसकी कृपा से लोग बिना थके चढ़़ रहे है। यही मेरे
गीत का आशय था।
अब उस औरत का चेहरा देखने लायक था अब वह उस
साधू से क्षमा याचना करने लगी।
9. स्वार्थी
बहुएँ
एक समय
की बात है एक नगर मे एक दम्पति मे चार बहूएँ थी। ससुर जी चल बसे थे। चारों बहुएँ सास
की मन लगाकर सेवा करने लगी। कुछ समय बाद सास ने सारा धन बहुओं मे समान रूप से बाँट
दिया। बँटवारे के बाद सास की सेवा मे शिथिलता आ गई। सास ने अपनी पड़ोसन के सामने अपना
दुखड़़ा रोया। वह बोली- चार चार बहुएँ होते हुए भी मुझे समय पर भोजन नही मिलता है। जो
मिलता है वह भी रूखा सूखा और बचा खुचा आदि मिलता है। घर मे मेरी कोई कदर नही करता।
इस पर पड़ोसन ने उसे सलाह देते हुए कहा कि एक कपड़़े की पोटली में बेर भर कर उसका मुँह
सी दो। यह पोटली हमेशा अपने पास रखो। जब कोई तुम्हारे पास से निकले तब पोटली इधर से
उधर रख लो। फिर देखो क्या चमत्कार होता है।
सास ने वैसा ही किया। बहुओं ने पोटली देखकर यह
सोचा कि पोटली मे धन भरा हुआ है। चारों बहुएँ फिर मन लगाकर सास की सेवा करने लगी। कुछ
समय बाद जब सास चल बसी तो चारों बहुएँ रोने लगी। धन की आशा मे सबसे अधिक सेवा करने
वाली बहू सबसे ज्यादा रो रही थी। उस पड़ौसन ने कहा-
धीरे-धीरे रो ए बाई। तान मती तोड़।
सासुजी की पोटली में गोल गोल बोर।।
10. राजा का न्याय
एक बगीचे
मे राजा के बैल से एक तेली के बैल की टक्कर हो गयी। बगीचे का माली और तेली उस टक्कर
को देख रहे थे। जल्दी ही टक्कर का परिणाम सामने आ गया। तेली के बैल ने राजा के बैल
को पराजित कर दिया। थोड़ी ही देर मे राजा के बैल ने दम तोड़ दिया। तेली ने सोचा कि यदि
माली ने राजा को शिकायत कर दी तो अवश्य ही मुझे सजा देगा इसीलिए समझदारी यही होगी कि
पानी आने से पहले ही पाल बाँध दो। वह भागता हुआ राजा के पास पहुँचा और बोला-महाराज न्याय कीजिए। आपके बैल ने मेरे बैल को मार डाला
है। राजा बोला-हम मनुष्यों का न्याय करते है पशुओं का नही। तेली बोला- हाँ महाराज। समझ गया मगर मैने गलती से उलटी खबर सुना
दी। सच तो यह है कि मेरे बैल ने आपके बैल को मार डाला है। अब राजा बदल गया। उसने कहा-
ठहरों हम भी जल्दी मे ठीक फैसला नह दे सकें। मनुष्य हो या पशु न्याय तो सब के लिए बराबर ही होता है। सुनो-लाल
किताब मे लिखा- यूँ खिला पिलाकर किया मुस्टंड, बैल का बैल और पचास का दण्ड।
सच ही
है- न्याय के बहाने जहाँ स्वार्थ की सिद्धि पर ध्यान होता है वहाँ ठीक न्याय नही हो
पाता है।
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