आज की कहानी उच्च शिक्षा पर आधारित है किस प्रकार वेदप्रकाश जी और मालती देवी ने अपने बच्चों को एक लायक और काबिल इन्सान बनाया समाज में एक पहचान दिलाई मगर क्या उनके बच्चें उनके प्रति अपनी जिम्मेदारी निभाएंगे! यह कहानी Sad Story in Hindi for life भी इसी पर आधारित है कृपया कहानी को पूरा पढे।
एक समय की बात है। किसी महानगर मे वेदप्रकाश जी का परिवार
रहता था। उनका छोटा सा परिवार था। उनकी पत्नि मालती देवी और उनके दो बच्चे आन्नद और विवेक उनके साथ रहते थे। वेदप्रकाश जी सरकारी नौकरी मे अच्छे पद पर कार्यारत थे
मगर वह गरीब परिवार से होने के कारण उनका बचपन बहुत गरीबी मे गुजरा था। इस कारण वह
चाहते थे कि उनके बच्चो की परवरिश व शिक्षा मे कोई कमी ना रहे। उन्होने अपने बच्चो
को अच्छी स्कूल मे पढाया और छोटी उम्र मे ही अपने बच्चो को विदेश मे पढ़ने के लिए
भेज दिया। उनकी पत्नी मालती चाहती थी कि उनके बच्चे उनके पास ही रहे। मालती देवी
ने वेदप्रकाश जी को कई बार समझाया कि वह बच्चो को अपने पास ही रहने दे यहाँ भी अच्छी
शिक्षा व्यवस्था हैं। यहाँ पढकर भी वह एक सफल और काबिल व्याक्ति बन सकते है जैसा
कि वेदप्रकाश जी चाहते थे। मगर वेदप्रकाश जी का रूख हमेशा से ही विदेश की ओर था
उन्होने हमेशा मालती देवी की बात को अनदेखा कर दिया।
समय के साथ आन्नंद और विवेक भी बडे हो गये और वेदप्रकाश जी
और मालती देवी की उम्र ढल रही थी। अब आन्नंद और विवके ने अच्छी शिक्षा हांसिल कर
ली और विदेश मे ही एक कम्पनी मे अच्छे पद पर नौकरी लग गये। वर्षो बाद अपने माता
पिता से मिलने उनके घर आये और काफी दिन उनके पास गुजारे । वेदप्रकाश जी अपने
बच्चो की सफलता देखकर फूले नही समा रहे थे। हमेशा से ही वह यही चाहते थे कि उनके
बच्चे एक काबिल और सफल व्याक्ति बने। मालती देवी के मन मे हमेशा से ही एक सपना था
कि उनके बच्चे उनके पास रहे उनका घर परिवार हमेशा फूला फला रहे उनके बच्चो की भी
गृहस्थी हो घर मे उनकी बहु और पोते पौती की किलकारियों से घर चहकता रहे। मगर यह
बात वेदप्रकाश जी को समझाना मुश्किल था उनके बच्चे पूरा एक महिना उनके पास रहे
उनके साथ समय बिताया अपने सुख दुख की हर बात एक दूसरे को बताते रोज शाम को मालती
देवी बच्चो के लिए अच्छे अच्छे पकवान बनाती। रोज वह लोग घूमने जाते। समय के अनुसार
अब उनके बच्चो की छुटिटयाँ समाप्त हो गयी और वह अपने घर चले गये।
कुछ ही समय पश्चात् उनके बच्चो ने अपने माता पिता को टेलीफोन
पर खुशखबरी दी कि उन्होने वहीं अपने पसन्द की लडकी से शादी कर ली है। यह खबर सुन
कर मालती देवी और वेदप्रकाश जी बहुत खुश हुए उनकी खुशी का ठिकाना नही था। खुशी के
साथ एक बात का दुख भी था कि काश् वह अपने बच्चों की शादी धूमधाम से होते हुए देखते
और सभी दोस्तों व रिश्तेदारों को दावत देते जश्न मनाते। मगर फिर भी उन्होने अपने
सभी रिश्तेदारों व जान पहचान वालों मे मिठाईयाँ बाँटी।
अब मालती और वेदप्रकाश जी छोटी छोटी बातों मे अपनी खुशियाँ
ढूंढने लगे थे। वेदप्रकाश जी के एक खास मित्र गौतम जी जो उनके पडौसी थे जो अक्सर उनके
पास आते थे। वह सुबह शाम उनके घर के पार्क मे ही समय व्यतीत किया करते थे। अब
वेदप्रकाश जी के सेवानिवृति का समय हो गया उन्होने अपने बच्चों को बताया और उन्हे
भी बुला लिया। पिताजी की सेवानिवृति की खुशी के मौके पर आन्नद और विवेक भी कुछ
दिनो के लिए घर आ गये। एक छोटी सी पार्टी ऱखी गयी जिसमे खास लोगो को आमंत्रित किया
गया। अब आन्नंद और विवेक भी अपनी पत्नियों के साथ अपने माता पिता की खुशी मे शामिल
होने आ गये। उन्हे देख मालती देवी और वेदप्रकाश जी की खुशी का ठिकाना नही था अपनी
बहुओं को पहली बार अपने पास देखकर दोनो बहुत खुश थे जैसे कोई सारे जहाँ की खुशियाँ
उनके उनके सामने हो। मन ही मन दोनो को अहसास हो रहा था कि आज उनका घर पूरा हो गया
है।
कुछ दिन तक दोनो बेटे वहीं थे। मालती देवी ने वेदप्रकाश जी
को बहुत समझाया कि अपने बच्चों से कहो कि अब वो अपने माता पिता के पास ही रहे।
विदेश पढने भेजा था वहाँ बसने के लिए नही भेजा था। कहीं ना कहीं यही बात अब
वेदप्रकाश जी के मन मे भी घर कर रही थी कि आन्नद और विवेक उन्ही के पास अपने घर मे
ही रहे। मगर कभी वह मालती देवी को बता नही पाये। अब उसी समय उनके खास मित्र गौतम
जी भी आ गये। मालती देवी ने उन्हे सारी बात बताई तो उन्होने भी मालती देवी का साथ
दिया और वेदप्रकाश जी को बहुत समझाया कि वह अब अपने बच्चों को अपने पास ही रखे।
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अगले दिन वेदप्रकाश जी अपने परिवार के साथ बैठे हुए थे।
वेदप्रकाश जी ने अपने बच्चो को समझाया कि अब वह अपने माता पिता के पास रहे। अब
हमारी उम्र हो चुकी है हमारे जीवन का क्या भरोसा कब हमे तुम्हारी जरूरत पड जाये।
मगर विवेक,आन्नद और उनकी पत्नियाँ यह समझने को तैयार नही थे
उनकी नौकरी पेशा सब कुछ तों वहीं पर था। वह अब पुरी तरह विदेशी सभ्यता मे घुल मिल
चुके थे वहाँ की सभ्यता और शोहरत उन्हे रास आ चुकी थी। माता पिता के ज्यादा जोर
देने पर उन्होने पिताजी से कहा कि अब आप सेवानिवृत हो चुके हो क्यों ना हमे यहाँ
रखने की बजाय आप ही हमारे साथ विदेश चलो आप भी अपना बाकी का जीवन हमारे साथ
गुजारें। आन्नद और विवेक की पत्नियों ने भी उनसे यही आग्रह किया।
आन्नद और विवेक के मुँह से यह बात सुन कर माता पिता दोनो
खुश हुए मगर वह अपना घर नही छोडना चाहते थे
आखिर मे उन्होने अपने बच्चो की बात मान ली। अब दोनो अपने बच्चो के साथ
विदेश चले गये । आन्नद और विवेक दोनो के पास अपने दो बडे से प्लेट जो एक दम आस पास
मे ही थे जिसमे उसके माता पिता दोनो आराम से रह सकते थे। मगर आन्नद और विवेक के साथ
साथ उनकी पत्नियाँ भी नौकरी करती थी उन सभी के काम पर जाने के बाद दोनो उनके फ्लैट
मे अकेले पड जाते थे। सुबह से लेकर रात तक अकेले ही रहते कभी बाहर पार्क मे समय
व्यतीत करते तो कभी अपने कमरे मे। अब धीरे धीरे आन्नद, विवेक और उनकी पत्नियों को भी उनसे
परेशानी होने लगी थी उनका रोकना,टोकना,समझाना उन्हे रास नही आता था।
माता पिता के हदय का हाल वह समझ नही पा रहे थे अब उनकी
बहुऐं और उनके बच्चे दोनो का व्यवहार उनके प्रति बदल चुका था शायद वह उनसे ऊब चुके
हो क्योंकि वह हमेशा से ही अकेले और आजाद रहे थे उन्हे किसी की रोक टोक पसन्द नही
थी आखिर मे वेद प्रकाश जी और मालती देवी भी वहाँ परेशान हो गये थे वहाँ उनके बच्चो
को उनकी वजह से तकलीफ हो रही थी यह उन्हे रास नही आ रहा था हालांकि उन्हे वहाँ का
हवा पानी जच नही रहा था उन्हे अपने घर की याद सताये जा रही थी। मगर वह अपने बच्चो
की खुशी के लिए यह सब बर्दास्त कर रहे थे। अब वह वजह भी समाप्त हो गयी उन्हे अभी
दो ही महिने हुए थे और दोनो नें अपने बच्चों से अलविदा कहा और उन्हे आर्शीवाद देकर
अपने देश अपने घर लौट आये।
अब जैसे ही वह अपने घर लौटे तब कहीं जाकर उनकी जान मे जान
आयी यहाँ सब कुछ उन्हे अपना सा लगता था। अब वह दोनो और उनके साथ पडौसी और खास
मित्र गौतम जी अच्छे से समय व्यतीत करने लगे। अब गौतम जी और उनका परिवार ही उनका
सहारा था। वह हर तकलीफ मे वेदप्रकाश जी की मदद के लिए दौडे चले आते थे। तकरीबन एक
साल बाद मालतीदेवी और वेदप्रकाश जी पर समय के बुरे बादल छाये मालती देवी अचानक से
एक रात बीमार हो गयी और उन्हे लकवा की समस्या हो गयी। वेदप्रकाश जी अपनी हँसती
खेलती पत्नि को इस हालत मे देख नही पा रहे थे उनके आँख मे आँसू आ रहे थे मगर ईश्वर
की कृपा से उनके कांधे पर हाथ रखने वाला एक हाथ था वह थे गौतम जी। वह उन्हे धीरज
बँधाते और बच्चो को अपने पास बुलाने के लिए कहते थे क्योंकि अब उनके माता पिता को
उनकी जरूरत थी। मगर आन्नद और विवेक के पास समय नही था अब वह अपनी गृहस्थी मे
व्यस्त थे उन्हे अपनी नौकरी से इतनी छुटिटयाँ नही मिल पा रही थी। कुछ दिन अस्पताल
मे बिताने के बाद मालती देवी को घर लाया गया।
अब मालती देवी पहले से काफी ठीक थी मगर उनके शरीर का एक हिस्सा लकवा ग्रस्त हो गया था। उनके पास बिस्तर पर रहने के आलावा कोई विकल्प नही थी। उनका एक हाथ एक पैर और एक तरफ के शरीर का भाग बेजान हो गयी थी। वेदप्रकाश जी रोज सुबह जल्दी उठकर मालती देवी के लिए चाय नाश्ता तैयार करते फिर जब वह उठ जाती तो प्रातःकाल का नित्यकर्म भी वही करवाते थे अब मालती देवी पूरी तरह से वेदप्रकाश जी पर निर्भर थी। मन ही मन दोनो अपने बच्चो को बहुत याद करते। मगर वह समझ गये थे कि उनके पास उनके लिए समय नही होगा।
कुछ महिने बीत जाने के बाद ही मालती देवी और वेदप्रकाश जी को आन्नद और विवेक ने खुशखबरी सुनाई कि वह दादा दादी बन गये है आन्नद के घर एक पुत्र ने जन्म लिया है। मालती देवी लकवा ग्रस्त होने के कारण बोल तो नही पाती मगर अपनी ख़ुशी इशारो से जाहिर करती। यही दृश्य दूर उनके घर के द्वार पर खडे गौतम जी देख रहे थे उनके सामने एक मजबूर माता पिता जिन्हे अपने बच्चों की शख्त जरूरत है मगर उनके बच्चे उनके साथ नही होने के बावजूद भी अपने पौते के जन्म की खुशी कैसे जाहिर कर रहे है कभी हँस रहे थे तो कभी रो रहे थे। आखिर मे गौतम जी ने अपने परिवार के सदस्य को यह खुशखबरी दी तो सभी वेदप्रकाश जी और मालती देवी की खुशी मे शामिल होने और उन्हे सांत्वना देने उनके घर आ गये। सभी ने उन्हे बधाई दी और साथ मे आन्नद और विवेक के जल्द ही घर आने की सांत्वना भी दी। सभी को अपने घर मे देख दोनो बहुत खुश हो गये। सभी ने मिलकर शाम को वेदप्रकाश जी के पौता होने की खुशी मे एक छोटी सी पार्टी रखी और शाम को भरपूर इन्जॉय किया। देर रात तक पार्टी खत्म हो गयी सभी वेदप्रकाश जी और मालती देवी को अलविदा कहकर अपने घर चले गये।
एक दिन वेदप्रकाश जी मालती देवी के सुबह नित्यकर्म के बाद
उनके लिए चाय बनाने रसोई की ओर गये मालती देवी को सुबह सबसे पहले चाय पीने की आदत
थी। वह अपने पलंग पर लेटी हुई थी अपने पति का इन्तजार कर रही थी। काफी देर हो जाने
के बाद भी उनके पति नही आये उन्होने सोचा शायद वह बगीचे मे पौधों को पानी देने चले
गये होंगे। अब बहुत समय हो चुका था तकरीबन एक घण्टा, मगर वेदप्रकाश जी कमरे मे नही
आये। मालती देवी उनका बेसब्री से इन्तजार कर रही थी। उन्हे समझ नही आ रहा था कि
आखिर वह क्या कर रहे है। उनका दिल बैठा जा रहा था मुँह से बोलने की कोशिश कर रही
थी मगर लकवाग्रस्त होने के कारण आवाज निकल नही रही थी। अब जब पुरे दो घण्टे हो गये
उनका सब्र का बाँध अब टूट चुका था। उन्होने एक हाथ जो थोडा बहुत काम कर रहा था और
उसका सहारा लिया और काफी मुसक्कत के बाद अपने आप को पलंग के नीचे गिराया। पलंग से
नीचे गिरते ही उनके शरीर पर काफी चोट आई मगर उन्हे अभी अपनी चोट से ज्यादा अपने
पति की परवाह थी।
मालती देवी ने अपने एक हाथ की मदद से जमीन पर अपना शरीर
घसीटना शुरू किया। बड़ी ही मुस्किल से दरवाजे के पास पहुँचने के बाद उन्हे जो दिखाई
दिया वह देख उनके होश उड गये। वेदप्रकाश जी जमीन पर लेटे हुए थे मगर उन्हे उनका
सिर्फ आधा हिस्सा ही दिखाई दिया था उन्होने अपने पति को सम्भालने का फैसला किया अब
घसीटती हुई अपने घर के आंगन तक पहुँची जहाँ रसोई के दरवाजे के पास वेदप्रकाश जी
बेहोश पडे हुए थे। मालती देवी ने उन्हे होश मे लाने की कोशिश की मगर वह सफल नही
हुई वह मन ही मन अपने ईश्वर को याद कर रही थी बार बार अपने बच्चो को पुकार रही थी
मगर उनकी जुबान और उनका शरीर उनका साथ नही दे रहा था। वह आज अपने आप को बहुत
बेसहारा और लाचार महसूस कर रही। मन ही मन मदद की गुहार कर रही थी बार बार अपने पति
के शरीर को उनके चेहरे को अपने एक हाथ के स्पर्श से छू रही थी अभी उनकी साँस चल
रही थी। अब उन्हे अपने पति के खास मित्र गौतम जी की याद आई।
कुछ ही देर बाद उन्हे सामने मेज पर पडा टेलीफोन दिखाई दिया।
वह किसी भी तरह घसीटती हुई वहाँ तक पहँची और टेलीफोन को तार से नीचे खिंचा अब
उन्हे याद आया की रात को उनके पति ने आखिरी बार गौतम जी को फोन किया था उन्होने
रिडाइल नम्बर पर फोन किया। गौतम जी अभी घर पर नही थे वह बाहर टहलने गये हुए थे फोन
की घण्टी बज रही थी मगर कोई उठा नही रहा था शायद अभी सभी सो रहे थे इतने मे दूसरी
घण्टी बजी मगर अभी भी टेलीफोन के पास कोई नही आया। जब तीसरी बार घण्टी बजी तो गौतम
जी का बेटे सुरेश ने फोन उठाया और हेल्लो.... हेल्लो...... बोलने के बाद भी सामने
से कोई आवाज नही आई उसने फोन काट दिया। उसी क्षण फिर घण्टी बजी फिर सुरेश ने फोन
उठाया फिर से वही प्रतिक्रिया पाई। उसने महसूस किया कि किसी के आ..आ..आ..आ..आ.....की
आवाज आ रही है। मगर कोई बोल क्यों नही रहा। उसने काफी देर तक हेल्लो.. हेल्लो...
कहने पर भी सामने से कोई बोल नहीं रहा है। इतने मे गौतम जी बाहर से घर के अन्दर
आये तो उसने उन्हे पूरी बात बताई इतने मे एक बार फिर घण्टी बजी इस बार गौतम जी ने
फोन उठाया और वही प्रतिक्रिया पाई। अब उन्हे समझ नही आ रहा कि आखिर कौन है जो बार
बार फोन कर रहा है मगर बोल नहीं रहा। इतने मे सुरेश ने वेदप्रकाश जी के बारे मे
पूछा तो गौतम जी बोले- बेटा, आज वो अपने घर के बगीचे मे नही थे मैने वहाँ रूककर
देखा मगर उनके घर का दरवाजा भी बन्द था इसीलिए मै भी सीधा घर पर ही आ गया मगर तू
उनके बारे मे क्यों पूछ रहा है। सुरेश बोला कहीं उन्हे हमारी मदद की जरूरत तो नही
है। गौतम जी बोले- बेटा मदद की जरूरत होती तो वेदप्रकाश जी हमे फोन कर देते रात को
ही तो बात हुई है उनसे और वह तो सुबह शाम मेरे साथ ही रहते है। उन्हे किसी चीज की
जरूरत होगी तो वह मुझे जरूर बोलेंगे। सुरेश बोला- पापा, कहीं मालती आन्टी ने तो फोन नही
किया।
इतना सुनते ही गौतम जी को विचार आया कि शायद यह फोन मालती
जी का भी हो सकता है। वह बोल नही पाती कंही वह किसी मुसीबत मे तो नही
हैं। कुछ ही क्षण मे उन्हे यकीन हो गया कि हो ना हो यह फोन मालती जी का ही होगा।
गौतम जी ने फैसला किया कि वह अभी इसी वक्त वेदप्रकाश जी के घर जायेंगे और उनका
हालचाल पता करके आयेंगे जिससे उन्हे तस्सल्ली भी हो जायेगी। सुरेश भी गौतम जी की
बात से सहमत था।
अततः वह दोनो वेदप्रकाश जी के घर की ओर गये। उन्होने उनका
दरवाजा व बैल बजाई मगर कोई सुन नही रहा था। काफी समय हो जाने पर भी जब
किसी ने दरवाजा नही खोला तो सुरेश ने खिडकियों मे से झाँकने की कोशिश कि मगर सभी
खिडकियाँ बन्द थी एक रोशनदान मे से सुरेश ने देखा कि मालती जी के पास टेलीफोन पडा
है और वह जमीन पर लेटी हुई है उसने आवाज देने की कोशिश की मगर कोई सुनने वाला नही
था। उसने गौतम जी को यह बात बताई तो गौतम जी ने आसपास के आठ दस लोगो को इक्कट्ठा
किया। अब गौतम जी और सुरेश ने बडी मुसीकल से दरवाजा तोडा तो उन्होने जो देखा वह
देख सभी हक्के बक्के रह गये। एक तरफ वेदप्रकाश जी जमीन पर पडे हुए थे और एक कोने
मे मालती देवी जमीन पर पडी हुई थी उन्होने दोनो को होश में लाने की कोशिश मगर वह उसमे सफल नही हुए। वह फोरन उन्हे अस्पताल लेकर गये। डाक्टर ने जब उनकी जाँच की तो
पता चला कि अब उनकी साँसे दम तोड चुकी है वेदप्रकाश जी को दिल का दौरा पडा था उनकी
आवाज सुनने वाला कोई वहाँ नही था शायद कुछ देर बाद उन्होने वहीं दम तोड दिया और
मालती उनकी यह हालत देख नही पा रही थी मन ही मन तड़प रही थी। उन्हे भी यह सदमा
बर्दास्त नही हुआ और उन्होने भी अपने प्राण त्याग दिया। दोनो पति पत्नि जो एक
दुसरे का सहारा थे दोनो ने दुनियाँ को एक साथ अलविदा कह दिया।
गौतम जी और उनका बेटा सुरेश व सभी यह हादसा देखकर आँसू बहा
रहे थे। उन्होने उनके बेटो को सुचना करने की कोशिश की वेदप्रकाश जी की एक डायरी मे
आन्नद व विवेक ने फोन नम्बर तो मिल गया मगर बहुत बार फोन करने पर भी नेटवर्क नही
मिल पा रहा था। इस तरह सुबह से शाम होने वाली थी मगर उनके बेटों को सुचना नही मिल
पा रही थी। गौतम जी व आसपास के लोगों ने वेदप्रकाश जी व मालती देवी का अन्तिम
संस्कार पूर्ण क्रियाक्रम के साथ किया। दुसरे दिन उनके बेटो से सम्पर्क हो पाया तो
उन्होने उन्हे उनके माता पिता के स्वर्गवास हो जाने की खबर दी और वह दो दिन बाद
अपने माता पिता के घर आये। गौतम जी ने उन्हे उनके माता पिता की अस्थियाँ व उनके घर
की चाबी देकर अपना फर्ज निभाया।
सीखः- दोस्तो Sad Story in Hindi for Life कहानी को पढने का नजरिया सभी का अलग अलग हो सकता है इसीलिए मै आपसे जानना चाहता हूँ कि आपको इस कहानी से क्या सीख मिलती है। कुपया मुझे कमेंट मे अपनी रॉय जरूर दे।
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