short moral story in hindi

 

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नमस्कार दोस्तों-- आपका हमारी कहानियों के चैनल मे स्वागत है आपको यहाँ मनोरंजन से परिपूर्ण और प्रेरणादायक हिन्दी कहानियाँ पढ़ने को मिलेगी। मुझे उम्मीद है कि यह आपके जीवन मे बेहतर साबित होगी।

 

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short moral story in hindi (हिंदी लघु कहानियाँ)

राज कुमार के सींग

प्राचीन काल की बात है एक जनक पुरी नामक राज्य मे एक राजा था। वह अपनी स्वभाविक प्रवृति से बहुत ही दयालु और धर्मिक व्याक्ति था उसके राज्य की प्रजा उससे काफी खुश थी राज्य मे चारों ओर सुख समृद्धि और शान्ति थी। उनका राजकोष धन धान्य से भरा हुआ था।

मगर राजा के पास सब कुछ होते हुए भी यह दुःख था कि उसके कोई सन्तान नही थी। वह निःसन्तान था। काफी पूजा पाठ, व्रत, अनुष्ठान करने के बाद आखिरकार भगवान् ने उस पर कृपा की और रानी ने एक पुत्र को जन्म दिया। राजा को जब यह खबर मिली कि रानी ने पुत्र को जन्म दिया है तो वह खुशी से फुला नही समाया जैसे दुनियाँ की तमाम खुशियाँ उसे मिल गयी हो यह सुभ समाचार सुनकर राजा बहुत प्रसन्न हुए और दौड़ते हुए रानी के कक्ष में पहुँचे। जैसे ही उन्होने पुत्र को गोद मे उठाया तो वह एक दम आश्चर्यचकित रह गया क्योंकि राजकुमार के सिर पर छोटे छोटे सींग थे।

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राजा नही चाहता था कि राजकुमार के सिर पर सींग होने की बात महल से बाहर जाए और लोग राजकुमार की हँसी उडाएँ। इसीलिए जब पहली बार उनके नाई ने राजकुमार के बाल काटते हुए वह सींग देखे तो उसे राजा ने कडी चेतावनी दी कि यह बात किसी को ना बताये अगर वह यह बात किसी को बताऐगा तो उसे फाँसी पर लटका दिया जायेगा।

नाई ने वचन दे दिया कि वह यह बात किसी से नही कहेगा। अब दिन तो किसी तरह से बीत गया मगर रात होने तक उसकी बेचैनी बढने लगी। उसके पेट मे जबरदस्त दर्द होने लगा।

सुबह उठकर उसने अपनी माँ से कहा- माँ... मेरे पेट में एक बात घुमड रही है और इसके कारण मेरे पेट में दर्द हो रहा है। बताइये कि मै क्या करूं।

 

माँ ने कहा- बेटा तुम वह बात मुझसे कह दो। इससे तुम्हे शान्ति मिलेगी और तुम्हारे पेट का दर्द भी ठीक हो जायेगा।

मै यह बात किसी को भी नही बता सकता। यदि मैने यह बात किसी को बताई तो राजा मुझे फाँसी पर लटका देगा- नाई ने बडी मासूमियत से उत्तर दिया।

माँ ने समझाया कि बेटा तुम ऐसा करो कि जंगल में चले जाओ और किसी पेड के कोटर मे अपनी बात कह दो। इससे तुम्हारी बात किसी पर प्रकट भी नही होगी और तुम्हारा पेट भी हल्का हो जाएगा।

नाई को माँ का सुझाव पसंद आ गया। वह जंगल में गया और एक पेड के कोटर में जाकर बोला- राजकुमार के सिर पर सींग है। यह कहने के साथ ही उसका पेट हल्का हो गया और उसका दर्द भी गायब हो गया। फिर वह घर लौट आया और सुखपूर्वक रहने लगा।

इस प्रकार समय बीतता गया। एक बार राजा के कुछ कारीगर जंगल मे आए। उन्हे एक ढोलक के लिए अच्छी लकडी की जरूरत थी।

संयोग से उन्होने उसी वृक्ष को चुना जिसके कोटर मे नाई ने अपनी बात कही थी। पेड काटकर उन्होने एक बढ़िया ढोलक बनाया।

राजमहल मे एक उत्सव के दौरान जब वह ठोलक बजाया गया तो उससे बार बार एक ही आवाज निकल रही थी- राजकुमार के सिर पर सींग है। राजकुमार के सिर पर सींग है। सब लोग यह सुनकर हँसने लगे। ढोलक बजाने वाला चकित हो गया।

जब राजा ने यह सुना तो तुरन्त नाई को बुलाया और उससे पूछा कि तुम्हे मैने चेतावनी दी थी कि यह बात किसी को मत बताना मगर तुमने मेरे आदेश का पालन नही किया अब फाँसी पर लटकने के लिए तैयार हो जाओ।

नाई ने कहा- राजन् मैने किसी को यह बात नही बताई।

राजा- नही तुमने उस ढोलक बजाने वाले को यह बात बताई है तभी तो वह ढोलक से यह स्वर निकाल रहा है। उसे यह बात तुमने नही तो किसने बताई।

नाई ने हाथ जोडकर राजा को सारी बात बताई कि किस तरह उसे पेट मे यह बात घुड घुड कर रही थी और अपनी माँ के सुझाव से ही उसने यह बात जंगल मे एक पेड के कोटर मे कही। अब राजा को भी नाई की बात का विश्वास होने लगा अर्थात् राजा ने नाई को निर्दोष मानकर माफ कर दिया।

short moral story in hindi (हिंदी लघु कहानियाँ)

जैसे को तैसा

एक समय की बात है एक जंगल मे एक चालाक लोमडी रहती थी। वह अत्यधिक चालाक थी और उसे दूसरो को मुर्ख बनाने मे बहुत आन्नद मिलता था। उसे चालाक लोमडी की मित्रता एक सारस से थी। जहाँ लोमडी चालाक प्रवृति की थी वंही सारस बहुत सीधा साधा और सच्चा प्राणी था। एक दिन लोमडी ने सोचा कि क्यों न सारस के साथ भी थोडा हँसी मजाक कर लिया जाए। यही सोचकर वह सारस के पास गई और उसे अपने घर पर भोजन का न्योता दिया।

सारस ने लोमडी को धन्यवाद दिया बोला मुझे भोजन पर आमंत्रित करने के लिए बहुत बहुत धन्यवाद ! मै अवश्य आऊंगा।

दूसरे ही दिन सारस समय पर लोमडी के घर दावत पर पहुँचा और लोमडी के लिए एक भेंट भी ले गया। जब भोजन का समय आया तो जैसे पहले से ही योजना बनी हुई थी लोमडी ने प्लेटो मे सूप परोसा। लोमडी के लिए तो प्लेट मे सूप पीने मे कोई समस्या नही थी मगर बेचारा सारस तो केवल अपनी चोंच का आखिरी सिरा ही सूप में भिगो पाया। भला चोंच से सूप कैसे पींता। वह भूखा ही रहा और लोमडी ने सारस के सामने ही उस पर हँसना शुरू कर दिया।

सारस को यह बात अच्छी नही लगी उसने अपने आप का बहुत अपमानित महसूस किया। वह समझ गया था कि लोमडी ने उसका मजाक उडाने के लिए ही इस दावत का प्रबंध किया है।

इधर लोमडी ने दोबारा चुटकी ली- क्यों... भोजन पसंद आया या नही।

सारस ने लोमडी से कहा- धन्यवाद! तुम भी कभी हमारे घर पर दावत पर आओ और भोजन का आन्नद लो।

सारस ने मन ही मन सोच लिया कि वह लोमडी से अपने इस अपमान का बदला अवश्य लेगा। दूसरे दिन ही लोमडी सारस के घर पहुँच गई। वह अपने साथ सारस को भेंट में देने के लिए कुछ भी नही लाई थी।

लोमडी मन ही मन सोच रही थी कि मै वहाँ जाकर जमकर खाऊंगी।

सारस ने भी भोजन में सूप ही तैयार किया था। उसने सूप को लम्बी गर्दन वाली सुराही में परोसा। उसने तो अपनी लम्बी चोंच सुराहीदार बरतन मे डालकर खूब छक कर सूप पिया। परंतु लोमडी इन सुराहियों के चारो तरफ चक्कर ही लगाती रही और देखती रही कि सुप को आखिर पिये तो पिये कैसे। लाख कोशिश करने पर भी वह सूप नही पी पाई। केवल सुराहीयों को बाहर से ही चाटती रही। उसे भी सारस की तरह ही भूखा रहना पडा। इस प्रकार सारस ने अपने अपमान का बदला ले लिया।

शिक्षाः- जैसे को तैसा।

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