Motivational story , अडवा का पराक्रम

 

Best Motivational story in hindi…

 

मै आपके समक्ष जो मोटिवेशनल स्टोरी पेश कर रहा हूँ मुझे उम्मीद है कि वह आपके जीवन में लाभदायक सिद्ध होगी आपको इससे जरूर कुछ सीखने को मिलेगा

 

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             अडवा का पराक्रम

एक गाँव मे एक व्यक्ति रहता था। जिसका नाम अडवा था वैसे तो अडवा नाम मूर्खता का प्रतीक है। उसके पिता नही थे। घर मे वह अपनी माँ के साथ रहता था। माँ का इकलौता पुत्र होने की वजह से उसे माँ ने इतने लाडप्यार से पाला की उसको संसार का कोई अनुभव नही था और वह निरा मूर्ख रह गया। ऐसा बेवकूफ होने पर भी धन के कारण उसका विवाह अच्छे घर मे एक अच्छी लड़़की से हो गया था। एक दिन अपनी माँ के कहने से वह अपने ससुराल जाने को तैयार हुआ। रास्ते मे खाने के लिए माँ ने नाश्ता दिया और उसे कहा कि रास्ते मे जहाँ सूर्य अस्त हो जाऐ वहाँ रात को ठहर जाना और वहाँ रात भर विश्राम कर लेना और ससुराल मे थोड़ा गंभीर बनकर रहना मतलब थोडा भार माँ रहना।

      अडवा बनठन कर ससुराल चला। अच्छे अच्छे कपड़े पहन लिए। कुछ गहने भी पहने और पीठ पर नाश्ते का डिब्बा रखा। डिब्बे में माँ ने शुद्ध घी की सुखड़ी बनाकर दी। चलते चलते एक खेत आया। रास्ता उस खेत में से ही निकल रहा था। उसमें से जाने के लिए एक खोड़ीबाड़ा रखा गया था। जैसे ही अड़वा ने अपना एक पैर उठाकर दूसरी ओर रखा, उसकी नजर ऊपर गयी। उसने देखा कि सूर्य अस्त हो गया था। वह बोड़ीखाड़े मे ही बैठ गया।

      रात होते होते एक सुनार आया। सुनार ने पूछा- क्यों भाई। यहाँ मार्ग के बीच में क्यों बैठे हो। अडवा ने कहा- मेरी माँ ने कहा था, जहाँ सुर्यास्त हो जाये वहाँ रातभर विश्राम कर लेना। यहाँ सूर्यास्त हो गया सो मे यहीं रूक गया। तुम भी यहीं विश्राम कर लो यहाँ मार्ग में मै बैठा हूँ,  सो कोई ड़र नहीं है। तुम इस पेड़ पर छिप कर सो जाओ। सुनार ने सोचा कि कहीं न कहीं तो रूकना ही है। यहाँ एक आदमी तो साथ में है और वह मार्ग के मध्य मे बैठा है। चोर लूटेंगे तो उसको लूटेंगे। पेड़ पर छिप जाएंगे तो चोर को पता ही नही चलेगा। यह सोच कर सुनार वृक्ष पर चढ़कर बैठ गया।

      कुछ देर हुई और एक मिठाईवाला सुखडिया आया। अडवा ने उसे भी सुनार की तरह वहीं रूक जाने को कहा और उसे बाड के पीछे छिप जाने को कहा। इतने में एक जौहरी आया, अडवा ने उसको भी उसने वहीं रूक जाने को कहा और उसे एक खड्डे  में छिप जाने को कहा। मध्यरात्रि को वहाँ चार चोर आए। अडवा मार्ग में बैठा था। उसको उठाए बिना आगे जाना संभव नही था। चोरो ने उससे पूछा- तुम कौन हो और यहाँ क्यों बैठे हो। अडवा ने कहा- मेरा नाम अडवा है। मै अपने ससुराल जा रहा हूँ। मेरी माँ ने कहा था जहाँ सूर्य अस्त हो जाए, वहाँ रूक जाना। यहाँ सूर्य अस्त हुआ, सो रूक गया हूँ।

     एक चोर ने कहा- यह ससुराल जा रहा है इसीलिए इसके पास धन होगा। दूसरे ने कहा- यह तो मुफसिल जैसा दिखता है, इसके पास क्या होगा। सुनते ही अडवा ने कहा-मुफसिल होगा तू और तेरा बाप। मै तो धनवान माँ का इकलोता बेटा हूँ। देखता नही ? यह सोने की चेन, सोने का कडा और हीरे की अँगूठी। चोरो को शक हुआ कि कड़ा सोने के बदले पीतल का तो नही है। तपाक से अडवा बोला- कड़ा असली सोने का है यदि तुम्हे विश्वास न होता हो, तो सामने वाले पेड़ पर सुनार बैठा है। उसके पास जाँच करा लो।

     चोरों ने सुनार को पकड़कर नीचे उतारा और उसके पास जो गहने थे, सब लूट लिया। सुनार मन मे अडवा को श्राप दे रहा था। सोचता था, कहाँ मैने उसका भरोसा किया। बदमाश ने लूटवा दिया। चोर समझ गए थे कि यह पक्का बेवकूफ है, इसीलिए एक चोर ने मजाक किया कि अँगूठी का हीरा नकली है। इतना कहना ही था कि तुरन्त अडवा बोल उठा। उस खड्डे मे एक जौहरी छिपा हुआ है वह किस काम आएगा ?  हीरे की परख तुम क्या जानो ? उससे पूछो,  तब तुम्हे विश्वास होगा कि यह सच्चा हीरा है।

     चोरों ने खड्डे मे से जौहरी को निकाला और उसका सब कुछ लूट लिया। एक चोर ने कहा- अडवा, तू तो बडा अच्छा आदमी है। तूने हमे मालामाल कर दिया। दूसरे ने कहा, लेकिन हम दिनभर से भूखे है। कुछ खाना नही मिला। अडवा ने कहा, मेरी माँ ने नाश्ते मे यह सुखडी दी है। लो तुम खा लो। चोरों को जोरो की भूख लगी थी। एक चोर ने शंका की, कि घी बनावटी होगा या शुद्ध। यह सुनकर अडवा ने कहा- यह एकदम शुद्ध भैंस का घी है। तुमको यकीन न हो तो बाड़ के पीछे सुखडिया बैठा है, उससे पूछ लो। चोरों ने सुखडिया को पकड़कर लूट लिया।

     चोरों के चले जाने के बाद सुनार, जौहरी और सुखडिया ने मिलकर अडवा की मरम्मत की। इस स्थिति मे भी अडवा जब ससुराल पहुँचा जो उसके सिर पर एक भारी पत्थर था। सास ने पूछा, कि इसे सिर पर क्यों उठाया हुआ है ? तो कहने लगा कि मेरी माँ ने कहा था कि ससुराल मे भार मे रहना, सो मैंने भार को उठाया है। यह सुनकर सालियाँ हँसने लगी।

     अपने ससुर के साथ वह खाना खाने बैठा। ससुर के पास में एक छोटा बच्चा था। वह हर चीज का नाम अपने दादा से पूछता था और दादा जी उसे कुछ न कुछ कहकर डाँटते थे। जब चावल परोसा गया तो बच्चे ने पूछा यह क्या है। दादा ने कहा-बोधा। अडवा समझा चावल को यहाँ बोधा कहते होंगे। फिर शाक आया बच्चे ने पूछा है यह क्या है। दादा ने कहा-चूप। फिर हलवा की बारी आयी बच्चे ने पूछा यह क्या है दादा ने कहा-साला चोर। अडवा ने समझा शायद यही उसका नाम होगा।

     जब सास ने दामादराज से पूछा कि आपके लिए क्या ले आऊं? तो उसने कहा - बाचको बोधा,  चपरी चूप और थोडा साला चोर लाना। सास और ससुर अपने दामादराज को देखते ही रह गए।

 

 

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