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 जब भी कहानियों की चर्चा होती है तो हमारी दादी नानी हमें भगवान और उनके भक्त की कहानियाँ अक्सर सुनाती है जिसमे श्री कृष्ण के परम भक्तों में मीरा बाई और धन्ना जाट जैसे भक्तों को नाम आता है आज हम भी god story in hindi में ऐसे ही ठाकुर जी के भक्त की कहानी लेकर आये है।

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ठाकुर की ठाकुराई god story in hindi hindi kahaniya story in hindi

एक समय की बात है जगन्नाथपुरी मे एक सेवा राम नाम का किसान रहता था। सेवाराम के परिवार मे उसकी पत्नि एक पुत्र व एक पुत्री थी उसका एक टूटा फूटा कच्चा पक्का सा घर था सेवा राम के पास एक छोटा सा खेत था जिसमे वह खेती किया करता था मगर लाख कोशिश करने पर भी जो अनाज  उत्पन्न होता उससे सिर्फ उसके परिवार का गुजारा हो पाता था। सेवा राम जगन्नथपुरी के मन्दिर मे भगवान के दर्शन के लिए प्रतिदिन जाया करता था आँधी, बारिश, तुफान हो या कितनी भी मुश्किले सामने हो वह मन्दिर जाना नही भूलता था। वह भगवान जगन्नाथपुरी यानि श्री कृष्ण का परम भक्त था जिनका एक नाम ठाकुर जी भी है उसके मन मे और जुबान पर ठाकुर जी का ही नाम रहता था। वह दिन रात ठाकुर जी की भक्ति मे ही खोया रहता था उसके साथ उसकी पत्नि भी अपने पति की तरह ठाकुर जी को अत्यन्त मानती थी। सेवा राम व उसके परिवार का मानना था कि उनके जीवन मे जो भी हो रहा है या जो भी होगा भगवान श्री कृष्ण यानि ठाकुर जी की कृपा से ही होगा। सेवाराम का परिवार बहुत गरीब था मगर ठाकुर जी के प्रति उसका अटूट विश्वास था।

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अब सेवा राम की उम्र ढलने लगी थी उसके बच्चे बडे हो गये थे। उसकी पुत्री विवाह योग्य हो गयी थी और सेवाराम का पुत्र उसके साथ खेतों मे उसका हाथ बटाने लगा था मगर उनकी आर्थिक अवस्था मे कोई भी सुधार नही था। सेवा राम ने अपनी पुत्रियों की शादी की जिम्मेदारी ठाकुर जी को सौप दी। उसका व उसकी पत्नि का मानना था कि ठाकुर जी ही उनके कर्ता धर्ता है वहीं उनकी पुत्री का विवाह भी करेंगे। सेवा राम और उसकी पत्नि का दिन से रात और रात से दिन ठाकुर जी की सेवा भक्ति मे गुजरता था।

अब समय अनुसार उनकी पुत्री के लिए एक अच्छे घर से रिश्ता आया लडका गुणवान व समझदार था हर तरह से वह उनकी पुत्री के लायक था। सेवा राम और उसके परिवार को यह रिश्ता पसन्द आ गया। सेवा राम ने ठाकुर जी की इच्छा समझकर यह रिश्ता स्वीकार कर लिया। विवाह का समय नजदीक आ रहा था पहला न्यौता ठाकुर जी को दिया गया। दोनो पति पत्नि अपनी आँखे नम किये ठाकुर जी को याद करते रहते थे। गाँव मे आस पास वाले सभी हैरान थे कि घर मे शादी है मगर घर मे कोई रौनक नही यहाँ तक की घर को रोशनी से सजाया भी नही, कल बारात आने वाली है। गाँव वालों ने मिलकर उसके घर को रोशनी से सजाया और उसकी बेटी के हाथों मे मेहन्दी लगी।

सुबह जब भोंर का समय हुआ था तो उन्होने सुना कि घर के दरवाजे के पास से आवाज आ रही है श्री हरि श्री हरि श्री कृष्ण श्री कृष्ण। जैसे कोई भगवान के नाम का जाप कर रहा हूँ। उन्होने दरवाजा खोला तो देखा कि उसके द्धार पर एक बूढा व्यक्ति नीन्द मे सो रहा है जो कि नीन्द मे ही ठाकुर जी का जाप कर रहा है। जिसके तन पर पुराने से कुपडे पहने हुए है गले मे एक झोला  लटकाये हुए है। उन्होने उसे जगाया और उसका परिचय पुछा तो उसने बताया की उसका नाम बनवारी है और वह कोई राहगीर है लम्बा सफर तय करके ठाकुर जी के दर्शन हेतू आया था कल दर्शन करके वापस जा रहा रात बहुत हो गयी थी और सर्दी भी तो वह उनके घर के बाहर ही विश्राम के लिए ठहर गया और उसे नीन्द आ गयी। 

सेवा राम ने बनवारी बाबा की बात सुनी तो वह उसे अपने घर के भीतर ले गया उसके टूटे फूटे घर मे एक खाली झोंपडा था जो अतिथियों के लिए बनाया गया था। उसने बनवारी बाबा का अतिथि स्वरूप स्वागत किया उसे पता चला कि बनवारी बाबा भूखा है, रात से उसने कुछ खाया ही नही हैं। घर मे रूखा सूखा बासी भोजन बचा हुआ था वही बनवारी बाबा को परोस दिया। बनवारी बाबा ने वह भोजन भी बडे चाव से ग्रहण किया और अपने पेट की भूख मिटाई। वह बोला- मैने सुना है आज तुम्हारी पुत्री का विवाह है गाँव मे सभी चर्चा कर रहे थे। इतना सुनते ही सेवा राम की आँखों से आँसू निकल आये वह बोला हाँ, बाबा आज मेरी पुत्री का विवाह है मगर मेरे पास तो सिवाय ठाकुर जी की भक्ति के कुछ भी नही है विवाह का प्रबन्ध पता नही कैसे होगा। शाम को बारात घर पर आने वाली है पुरे गाँव को निमन्त्रण दिया है। मै तो ठाकुर जी के भरोसे हूँ जो करेगा वहीं करेगा।

सेवा राम की आँखों से आँसू रूकने का नाम ही ले रहे थे। बनवारी बाबा बोला मुझे पता है तुम ठाकुर जी के परम भक्त हो मैने यह भी गाँव वालों से सुना है तम्हारा तो ठाकुर जी पर अटूट विश्वास है तो फिर क्यों घबराते हो उसके घर देर है अन्धेर नही। सेवा राम बोला- बाबा मुझे ठाकुर जी पर पूर्ण विश्वास है मगर आज शाम को घर पर बारात आने वाली है इतने मै बनवारी बाबा बोला जब ठाकुर जी पर इतना विश्वास है तो बस विवाह की तैयारी मे लग जाओ आगे वह अपने आप सम्भाल लेगा। सेवा राम बोला मगर कैसे बाबा। बनवारी बाबा बोला- तुम्हारे पास कुछ तो रूपये होंगे। सेवा राम बोला मेरे पास जो रूपया है उससे तो कुछ भी नही होगा। फिर उसे याद आया और बोला हाँ मैने ठाकुर जी के गुल्लक मे कुछ रूपये जमा किये है मै जो भी कमाता हूँ उसका एक छोटा सा हिस्सा ठाकुर जी की सेवा मे अर्पित कर देता हूँ। उसने गुल्लक फोडा उसमे कुछ रूपए निकले मगर उसकी कीमत बहुत कम थी। अब उसके पास सारा धन मिला कर भी इतने रूपये हुए कि कुछ 10..12..लोगो के भोजन का प्रबन्ध हो सके।

सेवा राम बोला - इतने मे क्या होगा। बनवारी बाबा बोला- देखा, ठाकुर जी तुम्हारे साथ है उन्होने कुछ लोगो के भोजन का प्रबन्ध कर दिया ना। बाकी लोगो के भोजन का प्रबन्ध भी वही करेंगे। तुम तो बस तैयारी मे लग जाओ और ठाकुर जी पर विश्वास रखों। सेवा राम ने ऐसा ही किया उसका विश्वास तो ठाकुर जी के प्रति पहले से ही अटूट था। जितना राशन का सामान आया असका भोजन बना लिया भोजन मे चूरमा, सब्जी-पूरी बनाई। तीन छोटे बर्तन मे सारा सामान आ गया। बनवारी बाबा ने सेवाराम का अपने पास बुलाकर समझाया- देखो सेवा राम जितने भी अतिथि आये उन्हे तुम अपने हाथो से  परोसना । सामग्री परोसने के वक्त ठाकुर का स्मरण करना मत भूलना जैसा कि तुम दिन रात करते हो। यह विचार कदापि मन में नही आये कि तुम्हारे पास भोजन कुछ ही लोगो का है और खासकर यह ध्यान रखना कि बार बार बेमतलब बर्तन मे यह सोचकर मत झांकना कि भोजन कितना बचा है। यह मान लेना कि ठाकुर जी ने बहुत दिया है जो हो रहा है उन्ही की कृपा से हो रहा है। सबसे पहले ठाकुर जी को भोजन करवाना मत भूलना। ठाकुर जी तुम्हारा कल्याण अवश्य करेगें।

शाम को बाराम आ गयी और सभी के भोजन का समय हो गया। सेवा राम और उसके परिवार ने बनवारी बाबा के बताये अनुसार सबसे पहले ठाकुर जी को भोग लगाया और उसके पश्चात ठाकुर जी का मन ही मन मे स्मरण करते हुए उसके नाम का जाप करते हुऐ अतिथियों के आदर सत्कार मे लग गया। सभी को आदर से अपने हाथों से भोजन करवाने लगा। सभी बडे चाव से भोजन कर रहे थे। श्री हरि श्री कृष्ण श्री हरि श्री कष्ण यही जाप अपने मन मे लिए हुए सेवा राम ठाकुर जी के स्मरण मे इतना खो गया कि उसे पता ही नही चल रहा था कि वह जितना भी परोसता उसका बर्तन खाली होने की बजाय उतना ही भरा रहता। मगर यह सेवा राम को नही पता चला उसे बनवारी बाबा ने बर्तन मे बेमतलब झाँकने को मना किया था। वह ठाकुर जी की भक्ति मे खोया हुआ था समय अनुसार सभी लोगो ने भोजन ग्रहण किया। मगर सेवा राम के भोजन के बर्तन खाली होने का नाम ही नहीं ले रहे थे।

सेवा राम और उसके परिवार सहित गाँव के सभी लोग हैरान थे कि आखिर सेवा राम ने इतने अतिथियों के भोजन का प्रबन्ध कैसे किया। मगर यह ठाकुर जी का चमत्कार था। सेवा राम व उसका परिवार ठाकुर जी का कोटि कोटि आभार प्रकट कर रहे थे आखिर आज ठाकुर जी ने अपना चमत्कार दिखा कर सेवा राम की भक्ति की लाज रख ली। विधि विधान के अनुसार सेवा राम की पुत्री का विवाह हुआ और उसकी विदाई हो गयी। जब सभी अतिथि चले गये तो सेवाराम और उसके परिवार ने संग बैठ कर भोजन किया उनका भोजन पूर्ण होने के साथ ही वह भोजन के बर्तन भी खाली हो गये।

इतने मे ही सेवा राम को बूढे बनवारी बाबा की याद आयी उसे लगा कि शायद बनवारी बाबा अपने विश्राम गृह मे अराम कर रहा होगा मगर उसने अभी तक भोजन नही किया सेवा राम स्वयं से कह रहा था कि मै भी कितना मूर्ख हूँ मैने एक अतिथि को भोजन भी नही करवाया वह भाग कर उसके विश्राम गृह की ओर गया मगर वहाँ पर तो कोई भी नही था वहाँ तो सिर्फ उसका झोला पडा हुआ था। वह इधर उधर पूरे घर व आसपास मे उसे देखने गया मगर वह कहीं नही मिला। जब वह नही मिला तो थक हार कर पुनः उसके विश्राम गृह में आया और दुखी होकर बैठ गया आखिर मे वह दुखी मन से ठाकुर जी से प्रार्थना करने लगा कि हे ठाकुर जी यह जाने अनजाने मे मुझसे कोनसा पाप हो गया। जिसने एक पिता की भांति मेरा मार्गदर्शन किया। मै उसे ही भोजन करवाना भूल गया मुझे माफ कर देना। वह अन्यन्त विलाम करने लगा उसकी आँखों से आँसू रूकने का नाम ही नही ले रहे थे। 

आखिर मे जब ठाकुर जी से उसका विलाप देखा नही गया तो अचानक से एक आवाज आई -- इतना दुखी क्यो हो रहे हो सेवाराम, तू शायद भूल गया कि तुमने सबसे पहले मुझे ही तो भोजन करवाया था। सेवाराम को समझ नही आ रहा था कि यह आवाज कहाँ से आ रही है यह आवाज तो बनवारी बाबा की है मगर आस पास मे वह कहीं नही था। इतने में जब उसकी नजर बनवारी बाबा के झोले पर गयी। उसने तुरन्त उसका झोला खोला तो उसमे ठाकुर जी की मुर्ति थी। सेवा राम समझ गया कि जरूर यह आवाज मुर्ति मे से ही आयी हैं उसका मन भर आया और फिर से उसके आँखो से आँसू बहने लगे वह समझ गया था कि बनवारी बाबा और कोई नही स्वयं ठाकुर जी ही थे जो कि उसका मार्गदर्शन करने आये थे।

वह मन ही मन अपने आप को कोस रहा था कि मै कितना अभागा हूँ मैने जिसकी भक्ति जीवन भर की आज वह स्वयं मेरी कुटिया मे आये मगर मै उन्हे पहचान भी नही पाया मैने उनकी सेवा करने की जगह रात का बासी भोजन करवाया। ऐसे मे फिर से मूर्ति मे से एक आवाज आयी- सेवा राम तुम बहुत भोले हो मगर तुम्हारा मन साफ है। मै तुम्हारी श्रद्धा और भक्ति से बहुत प्रसन्न हूँ। तुम्हारा मुझ पर अटूट विश्वास था तुमने अपनी पुत्री के विवाह का  पहला न्यौता मुझे ही तो दिया था और मुझे विवाह की जिम्मेदारी भी सौंपी थी तो मुझे तो हमारी पुत्री के विवाह मे आना ही था बस मै तो हर बार अपने एक नये रूप मे आता हूँ। तुम्हारा अटूट विश्वास मुझे यहाँ खींच लाया तुम्हारा कल्याण हो सेवाराम। इतने मे वह आवाज बन्द हो गयी।

सेवाराम और उसके परिवार ने ठाकुर जी को शीश झुका कर कोटि कोटि प्रणाम  किया और ठाकुर जी की मुर्ति को फूलो से सजा कर अपने मन्दिर मे रखा। ठाकुर जी के प्रति उनका अटूट विश्वास और भी प्रगाढ गहरा हो गया था। उनका पूरा जीवन ठाकुर जी के स्मरण व भक्ति मे ही गुजरा।

सीखः- god story in hindi से हमें यह सीख मिलती है कि अगर इन्सान के मन मे ठाकुर जी के प्रति सच्चा विश्वास व श्रद्धा हो तो उसका कल्याण अवश्य होना है।

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