नमस्कार दोस्तोः- आपका हमारी प्रेरणादायक कहानियों
की दुनियाँ मे स्वागत है। मुझे उम्मीद है कि आपको हमारी कहानियाँ पसन्द आ रही
होगी। आज मै आपके सामने एक डिलिवरी बॉय की कहानी लेकर आया हूँ जो उसके जीवन और
उसकी मेहनत को दर्शाती है।
खुशियों
की होम डिलिवरी । एक डिलीवरी बॉय की
कहानी । Hindi Kahaniya । Moral Stories । Hindi Kahani
दिपावली को त्यौंहार के बारे मे हम
सभी अच्छी तरह से जानते है। जिस दिन पुरा घर रोशनी से सजाया जाता है दीप माला की
जाती है। खूब सारी शॉपिगं की जाती है। बच्चे इस इन्तजार मे रहते कि ना जाने कब शाम
होगी और खूब सारे पटाखें जलायेंगे और घर के सभी बडे भी लक्ष्मी पूजा की तैयारी बडे
ही चाव से कर रहे होते है ताकि धन धान्य, सुख समृद्धि, वैभव और एश्वर्य की देवी माता श्री
लक्ष्मी का उनके घर मे प्रस्थान हो। शाम को तकरीबन सभी लोग जल्दी ही अपना कार्य निपटा
कर घर आ जाते है ताकि अपने परिवार के साथ दीवाली का आन्नद ले सके। उसी जगमगाती
रोशनी के बीच कॉलोनी मे एक डेलिवारी बॉय आया। उसका नाम जिग्नेश था। वह बहुत ही
मेहनती और ईमान दार प्रवृति का लडका था। वह मालती जी के घर की बेल बजाता है
उन्होने नया मोबाइल आर्डर किया हुआ था। उस समय मालती देवी स्वयं तो नही थी। उनकी
बेटी आँचल ने दरवाजा खोला। आँचल का व्यवहार सभी के प्रति बहुत रूखा था आँचल ने बेल
की आवाज सुनी और चिढ़ते हुए बोली- कौन है दरवाजे पर। जिग्नेश अक्सरी मालती देवी के घर उसके ऑर्डर की डिलिवरी लेकर आता था मगर
आँचल के बारे मे वह नही जानता था। जिग्नेश बोला मैडम आर्डर है। आँचल तडक कर बोली-
तुम्हे पता है हम कब से आर्डर का इन्तजार कर रहे है। इतनी लेट क्यों लाये हो। मै
तुम्हारी कम्पनी में शिकायत करूंगी।
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जिग्नेश बोला- मैडम, आज की ही तो डिलिवरी
की तारिख थी और आज आपको आर्डर भी मिल गया। आँचल बोली- तो क्या हुआ ऑर्डर मिल गया
तो अब इतनी देर से शाम होने को आये हो। जिग्नेश - मगर मैडम आज की सुबह से शाम 7 बजे तक का डिलिवरी का समय था फिर आपकी
शिकायत कैसे होगी। आँचल- अच्छा, तुम मुझे सिखा रहे हो कि मेरी शिकायत होगी। वह उसे ना जाने क्या समझ रही थी और
बडी ही रूखे स्वभाव से बात कर रही थी बेमतलब ही जिग्नेश पर गुस्सा हो रही थी। आँचल
उसे पेंमेंट करके अपना आर्डर ले लेती है।
जिग्नेश ने आँचल से पूछा- मालती जी
घर पर नही है क्या।
क्यों तुम्हे उनसे क्या काम है।
आँचल बडे ही टेडे रूख से बोली। जिग्नेश- नही कोई खास काम तो नही है परसो उनका एक ऑर्डर
आया था उन्होने मुझे कैश दिया और वह शायद किसी जरूरी काम से निकल रही थी और जल्दी
मे भी थी। मैने जब तक कैश गिना तब तक वह निकल चुकी थी। मैने उसी समय उन्हे कॉल
करके बताना चाहा मगर उन्होने मेरा कॉल नही उठाया फिर जब थोडी देर बाद उन्होने मुझे
पुनः कॉल किया तो मैने उन्हे कैश के बारे मे बताया तो उन्होने कहा- भैया आप तो आते
ही रहते हो 100 रूपये की ही तो बात है कभी और हिसाब कर लेना। कल मेरा आना हुआ नही
था आज अगर वो है तो.......... इतने मे ही उसकी बात काटते हुए आँचल ने कहा - अच्छा
तुम्हारा कहने का मतलब है कि मेरी मम्मी ने तुम्हे रूपये कम दिये- वह गुस्से से
बोली। मै कैसे मान लू कि तुम सच कह रहे हो अभी घर पर कोई नही है तुम बाद मे आना..........
इतना कहने के बाद उसने जिग्नेश के मुँह पर ही दरवाजा बन्द कर दिया। जिग्नेश अपनी
बात पूरी कहना चाहता था मगर वह कुछ सुनने को तैयार ही नही थी।
यह पुरा दृश्य मालती जी के पडौसी चौपडा
साहब अपने दरवाजे पर खडे भलीभांति देख रहे थे। चौपडा साहब एक लेखक थे और एक बेहद
की सुलझे हुए और समझदार व्यक्ति थे। मालती देवी की तरह चौपडा साहब भी जिग्नेश को
जानते थे वह उनके घर भी अक्सर डिलिवरी लेकर आया करता था। वह उसके व्यवहार से भी
काफी खुश थे मगर आँचल का व्यवहार जिग्नेश के प्रति देखकर चौपडा साहब को बुरा लग
रहा था ऐसे मे चौपडा साहब जिग्नेश की तरफ आये उनकी आपस मे मुलाकात हुई ही थी कि
इतने मे मालती देवी भी अपनी गाडी से वहाँ पहुँच गयी। मालती देवी बोली- अरे, भैया आप आ गये मै आपका ही इन्तजार
कर रही थी। जिग्नेश बोला- मैडम, मैने आपका ऑर्डर घर पर दे दिया है। मालती जी बोली-
भैया आप परसो कुछ पेमेंट के बारे मे बता रहे थे। जिग्नेश बोला – मैडम, परसो आपने मुझे जो कैश दिया था
उसमे 100 रूपये ज्यादा थे। मैने सही ढ़ग से गिनती
किया जब तक आप निकल चुकी थी।
मालती जी की आवाज सुन कर आँचल भी
दरवाजे पर आ गयी। जिग्नेश ने अपनी जेब से सौ रूपये का नोट निकाला और मालती जी को
दिया। मालती जी उसकी ईमानदारी देखकर बहुत खुश हुई। चौपडा साहब भी यह देख रहे थे और
आँचल भी यह सब देख रही थी उसे लगा था कि शायद जिग्नेश उससे सौ रूपये लेना चाहता
होगा मगर ऐसा नही था वह तो सौ रूपये ज्यादा होने की बात कह रहा था। यह सब देखकर आँचल
बहुत ही शर्मिंदा हो रह थी। चौपडा साहब आँचल की तरफ देखकर बोले- देखा बेटा यह है
इसकी ईमानदारी और तुम पता नही इसके बारे मे क्या सोच रही थी। कभी तुम कहती हो तुम
इसकी शिकायत कर दोगी कभी कहती हो लेट आये हो।
मालती जी यह सुनते ही अपनी बेटी पर
गुस्से मे बोली- क्या, तुमने इस डिलीवरी वाले भैया को यह
सब बोला। तुम कैसी बेहुदा बात कर रही हो। तुम जानती हो यह काफी समय से हमारे घर आर्डर
देने आता है। इसका नाम जिग्नेश है और यह बहुत ईमानदार है यह तो तुमने अभी देख ही
लिया होगा। जो ऑर्डर यह लाया है ना वह सही दिन व सही समय पर आया है और तुम पता नही
इससे किस तरह से बात कर रही थी वह और कुछ कहती..... इतने मे चौपडा साहब ने आँचल को
बडे ही प्यार से समझाते हुए कहा कि बेटा किसी के बारे मे बिना सोचे समझे कोई रॉय
नही बनानी चाहिए। दिपावली पर काम ज्यादा हाने कि वजह से शाम तो पड ही जाती है।
तुम्हे पता है काफी समय से अक्सर यह मेरे घर भी आर्डर लेकर आता है। जब हम सब गर्मी
मे दोपहर के समय अपने घर मे ए.सी. मे सो रहे होते है। उस तेज गर्मी मे भी ना जाने
कितनी बार यह डिलिवरी लेकर आता है। मै कई बार इसे अन्दर छाँव मे आने को कहता हूँ
तो कहता है अंकल मेरे पास काम ज्यादा है। आँधी,बारिश,तूफान कभी नही रूकता। ये जो सामने
बरगद का पेड देख रही हो अक्सर मैने इसे उसके नीचे खडे देखा है कभी धूप से तो कभी
बारिश से बचने के लिए। चाहे तेज सर्दी हो या तेज गर्मी यह अपना काम कभी बीच मे नही
रोकते, पता है क्यों ताकि हमे और हमारे जैसे सभी ग्राहकों को अपनी डिलिवरी समय पर
मिल सके और बदले मे हम इनसे सम्मान पूर्वक व्यवहार भी नही कर सकते। तुम्हे पता है
यह कल मेरे घर मेरे पौते का टेडी बियर लेके आया था पता है वह कल से कितना खुश है वह
सोते जागते, उठते बैठते उसका साथ नही छोडता है
खाना भी खाता है तो उसे साथ लेकर ही खाता है। जब से कल मेरे पौते को पता चला कि
उसका टेडी बियर आज आने वाला है वह इसका बेसब्री से इन्तजार कर रहा था जब भी कोई
बाईक वाला गुजरता उसके लगता कि डिलिवरी बॉय है वह भाग कर दरवाजे पर आता। जब भी डोर
बेल बजती उसे लगता कि डिलिवरी बॉय है आखिर मे जब इसने उसके हाथ मे उसका तोहफा दिया
जब उसे चैन आया। मेरे लिए वह एक डिलिवरी नही मेरे पौते की खुशियाँ थी। भले ही हम
लोगों ने कम्पनी को पैसा देकर सामान खरीदा होगा। मगर अगर डिलिवरी बॉय ही ना हो तो
हमारे घर तक सामान कौन पहुँचायेगा। वह डेलिवरी बॉय ही होता है जो कि प्रकृति के हर
बदलते मौसम मे बिना रूके अपना काम करता है इसके बैग मे जितने भी ऑर्डर है ना, वह सभी को उतने ही प्रिय है जितना
कि मेरे पौते को उसका टेडी प्रिय था। वह लोग भी अपने आर्डर का बेसब्री से इन्तजार
कर रहे होंगे। इसके लिए वह मात्र् एक ऑर्डर होगा, मगर हमारे लिए वह मात्र् ऑर्डर नही हमारी खुशियाँ है और जो
हमारे घर तक खुशियाँ डिलिवरी करता है .......बदले मे क्या हम
इनसे सम्मान पूर्वक व्यवहार भी नही कर सकते।
अब जिग्नेश ने चौपडा साहब को रोक
दिया और बोला- कोई बात नही सर, ऐसी छोटी-मोटी बाते तो होती रहती
हैं। इतने मे आँचल ने भी शर्मिंदा होकर जिग्नेश को सॉरी बोला। वह सौ का नोट अभी भी
मालती जी के हाथ मे ही था उसने वह सौ का नोट वापस जिग्नेश को दिया जिग्नेश ने एक
बार तो वह सौ रूपये लेने से मना कर दिया मगर मालती जी ने उसे दिपावली का शगुन समझ
कर रखने को कहा तो वह उन्हे ना नही कर पाया। चौपडा साहब, मालती जी और आँचल ने जिग्नेश को
दिपावली की बधाई दी बदले मे जिग्नेश ने भी उन्हे दिपावली की बधाई दी और अपनी बाइक
स्टार्ट करते हुए अगली डिलीवरी की ओर रवाना हो गया।
सीख:- किसी भी इंसान के बारे में बिना सोचे समझे अपनी कोई रॉय ना बनाये, अपने विचारो में थोडा संयम रखे।
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