3 short motivational story

 

नमस्कार दोस्तों -- मै आपके समक्ष जो मोटिवेशनल स्टोरी पेश कर रहा हूँ मुझे उम्मीद है कि वह आपके जीवन में लाभदायक सिद्ध होगी आपको इससे जरूर कुछ सीखने को मिलेगा

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1.झूठा अभिमान 

2.शराबी और नांव

3.अंतिम पत्थर

                                                                                                       झूठा अभिमान

(short motivational story)

एक बार किसी जँगल मे एक खरगोशनी रहता था जिसका नाम शशि था उसके बाल सफेद और मुलायम थे। उसको अपनी सफेदी का बडा अभिमान था। वह बहुत बातुनी थी। जो भी मार्ग मे उसे मिल जाता वह उससे बातें करने लग जाती थी मगर वह मात्र सफेद रंग वालो से ही बातें करती थी उन्ही से दोस्ती रखती थी। सफेद बैल, सफेद घोडा, सफेद गधा, सफेद बकरी यह सब उसके मित्र थे यदि मार्ग मे कोई काला जानवर मिले तो वह मुँह बनाकर मुड जाती थी। काले हिरण को तो अपना दुश्मन जैसा मानती थी और उससे कभी बात करना भी पसंद नही करती थी।

      वह बैल, घोडा, गधा सब उसके गुणो का बखान करते थे इससे वह बड़ी अभिमानी हो गई थी। इतने मित्रों के कारण वह किसी से डरती न थी। एक दिन अचानक उसके सिर पर आफत आ गई। शशि रानी साधारण घटनाओं से कभी नही डरती थी किन्तु बात यह हुई थी कि जँगल मे कुछ शिकारी आए थे और उनके साथ यमदूत जैसे चार कुत्ते भी थे। कुत्ते को शशि की बास आते ही वे उसके पीछे दौड़ पड़े। शशि रानी सिर पर पैर रखकर भागी। एक शिकारी ने गोली चलाई पर वह संयोग से बच गई। आगे-आगे शशि रानी भागी जा रही थी और उसके पीछे भौंकते हुए कुत्ते।

      मार्ग मे सफेद घोड़ा मिला। शशि ने कहा- घोडा भाई। मेरे पीछे शिकारी कुत्ते पडे है। अपनी पीठ पर बिठाकर मुझे बचा लो। मै तुम्हारी मित्र हूँ। घोडे ने कहा- मै अभी काम पर हूँ। अपने बछडे को दौडना सीखा रहा हूँ। तुम डरना मत पीछे दूसरे मित्र आते होंगे ऐसा कहकर वह आगे निकल गया। आगे बैल मिला। बैल से भी शशि ने बचाने के लिए प्रार्थना की। बैल ने कहा अरे। इन कुत्तों की क्या बिसात। परन्तु मुझे जाकर खेत में हल चलाना है। तुम जानती हो मालिक का काम तो पहले करना चाहिए। वह चला गया फिर वह सफेद बकरा मिला। शशि ने उससे भी विनती की वह उसे अपनी पीठ पर बिठाकर बचा ले। बकरे ने कहा- मुझे तुम पर दया आ रही है मगर मेरे बाल मोटे और पैने है पीछे भेड़ आ रही है। तुम उस पर बैठ कर भागो उसके बाल भी मुलायम है। यह कहकर बकरा भाग खड़ा हुआ। भेड़ आई तो उसने स्पष्ट कह दिया कि उसमे शशि को बचाने की गुंजाइश नही है क्योंकि कुत्ते उसको भी मार सकते है यह कहकर वह दुम दबाकर भाग गई।

      अब शशि रानी थक गई थी और दौड-दौडकर उसकी सांस भी फूल गई थी। आगे उसे बछ़डा मिला उसने बछ़़डे को रोककर बचाने की प्रार्थना की। बछ़डे ने कहा- तुम्हारे साथ मेरी पूरी हमदर्दी है परन्तु मै डेढ़ महिने का बच्चा हूँ तुम्हे कैसे बचा सकता हूँ। गधा भी आगे मिला और ऐसा ही बहाना बताकर चला गया। शशि रानी की उसके मित्रो में से किसी ने मदद नही की। वह हताश होकर रोने लगी। इतने मे वहाँ वह कालिया हिरण आ गया जिससे वह नफरत करती थी। कालिया हिरणो का राजा था। उसने शशि रानी को मुसीबत मे देखा। उसने अपने सींगो के ऊपर शशि को उठा लिया और उसे ले भागा। शशि रानी बच गई। वह जिससे नफरत करती थी उसी ने उसे बचाया था। शशि रानी ने अब समझा कि उसको रंग का झूठा अभिमान था। जो उसका बखान करते थे वह उसके सच्चे मित्र नही थे। सच्चा मित्र तो वह होता है जो मुसीबत मे काम आता है जैसे कालिया हिरण जिसने उसकी जान बचाई। अब वही उसका सच्चा मित्र है।

 

शराबी और नांव

(short motivational story in hindi)

एक समय की बात है एक गाँव मे चार शराबी दोस्त रहते थे। एक दिन सभी ने दूसरे गाँव सैर करने का विचार किया। दिन भर शराब का सेवन करने के बाद शराब का नशा कुछ ज्यादा हो गया और रात पडने पर उन्होने दूसरे गाँव निकलने का निश्चय किया। चारों दोस्त नांव मे सवार हो गये चारों खूब चप्पू चलाते रहे उन्होने सोचा कि अब वह काफी दूर पहूँच चुके है बस अब दूसरे गाँव का किनारा आने ही वाला है। शराब का नशा भी ज्यादा हो गया और चप्पू चलाते चलाते वह थक चूके थे अब चारों नाँव मे ही सो गये थे। जब सुबह हुई तो वह जाग गये चारों किनारा पाकर बहुत खुश हुऐ मगर बाद मे उन्हे लगा कि यह गाँव तो उनके गाँव जैसा ही है। आखिर मे मालूम चला कि वह तो उन्ही का गाँव है। चारों बहुत ही परेशान हो रहे थे। इतनी रात नाँव चलाते रहे और नाँव उसी किनारे पर खड़ी है इतनी मेहनत के बाद भी वो ही किनारा किसी एक ने कहा- इसका कारण तो जानो। इधर उधर देखा गया तो पता चला नाँव जिस खूंटे से बंधी है वो रस्सा तो किसी ने खोला ही नही नाँव आगे जाती कैसे। नीतिकार कहता है यह कथा संसारी लोगो से मेल खाती है हम लोग परिवार से इतना पक्का सम्बन्ध बना लेते है कि दूर जाना ही नही चाहते। परिवार के साथ अपने को बाँध कर रखते है। संसारी बन्धन जब तक होगा हम कैसे दुनियाँ देख सकते है। आप जितनी मेहनत करो चप्पू चलाओ मगर जब तक रस्सा नहीं खोलोगे तक तक कुछ नही होगा। दूसरे किनारे जाना है तो यह किनारा छोड़ना ही पडेगा। संसार मे मोह का बन्धन है वो छूटता नही तो कहाँ पर जा सकोगे यही सार है।

 

अंतिम पत्थर

(short moral story for success)

 एक समय की बात है। एक सुबह एक मछुआ नदी की ओर अपना जाल लेकर जा रहा था। जब नदी के किनारे पहुँचा तो उसने देखा कि अभी तक सूरज की रोशनी भी नही हुई है। काफी अंधेरा इस धरती पर छाया हुआ है। सूरज के प्रकाश की प्रतीक्षा मे वह नदी के किनारे पर बड़़़ी मस्ती और आन्नद से टहल रहा था। टहलते टहलते उसका पैर किसी चीज पर पड़ा। वह कोई झोला था बडी उत्सुकता से उसने उस झोले मे हाथ डाला तो पाया कि बहुत बडे बडे चमकीले पत्थर है।

समय बीतने के लिए मछुए ने झोले मे से एक एक पत्थर निकाला और नदी मे फेंकता गया। उसे तो सूरज की रोशनी की प्रतीक्षा थी। समय बीताने के लिए हम कोई भी कार्य कर लेते है। हम कहाँ सोच पाते है कि कार्य कितना अर्थपूर्ण है। धीरे धीरे उसने झोले के सारे पत्थर एक एक करके फेंक दिये जब अंतिम पत्थर हाथ मे था कि सूरज की किरणें धरती पर फेल गई। उस प्रकाश मे जो अंतिम पत्थर हाथ मे बचा था वह साफ साफ झलक रहा था। उस पत्थर को देख कर वह दंग रह गया। उसके हदय की धडकने बंद सी हो गई। साँसे रूक गई और आँखो से आँसू झरने लगे। गहरे पश्चाताप से वह फूट फूट कर रोने लगा क्योंकि उसने उस चीज को पत्थर समझकर फेंका था वे सिर्फ पत्थर नही थे। वे तो अनमोल हीरे थे। ऐसे हीरों को उसने पत्थर समझकर फेंक दिया था। पश्चाताप का कारण ही यह था कि अपने हाथों से वह अब तक करोडो के हीरे पानी मे फेंक चुका था। सिर्फ अंतिम पत्थर को देख देख वह अंधेरे को कोस रहा था। अंधेरे के कारण वह चमकीले पत्थरों को समझ नही पाया उस मछुए की आँखों को हीरे पहचानने की क्षमता तो थी परन्तु अंधेरे के कारण उसे भ्रांति हो गई। प्रकाश होते ही उसकी आँखो ने पहचान लिया।

      वह नदी किनारे शोकमग्न बैठा हुआ था। इतने मे वहाँ से एक महात्मा निकले। उन्होने उसका दुख जानकर कहा कि बेटे रोओ मत प्रसन्न हो क्योंकि तुम अब भी सौभाग्यशाली हो। तुम्हारा यही सौभाग्य है कि अंतिम पत्थर फेंकने से पहले सूरज की रोशनी निकल गई। तुम्हारी आँखो की रोशनी ने हीरे को पहचान लिया था। यह सुनकर मछुआ अपलक नेत्रो से महात्मा को देखने लगा। तब महात्मा ने उसकी पीठ थपथपाते हुए कहा कि अब अपना होश सम्भालों। ये अंतिम पत्थर भी बडा मूल्यवान है। यह एक हीरा भी तुम्हारी जिन्दगी को रोशन करने के लिए काफी है।

      ज्ञानी महापुरूषों ने भी धर्म संदेश देते हुए कहा यह जीवन भी अमूल्य संपदा है। जिस संपदा को हम फेंकने या गंवाने के सिवा कुछ भी नही कर पाते है। जीवन के अधिकांश क्षण हम व्यर्थ की सोच मे प्रपंच मे एवं दंगे फसाद मे बीता देते है। जीवन के सारे हीरे हम अनावश्यक और अकारणीय कार्य मे बीता देते है। सबसे बडा आश्चर्य तो यह है कि संपदा के व्यर्थ जाने का पश्चाताप भी हमे नही हो पाता। इसीलिए भगवान महावीर ने कहा जागो। जीवन के मूल्य को जीवन के रहते ही समझ लो। जीवन बीत जाने के बाद जागने का कोई अर्थ नही है अर्थात जीवन के रहते हुए अपना विवके-दीप जला लो जिससे जीवन मूल्यवान बन जाता है।

      

       

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