हमारी आज की कहानी बेस्ट हिंदी कहानी छोटे छोटे बच्चों के लिए मे हम एक कहानी पेश करने जा रहे है जिसमे महात्मा बु़द्ध के निस्पाप जीवन के बारे मे दर्शाया गया है। हमे उम्मीद है आपको यह कहानी बेहद पसन्द आयेगी और बच्चों के उज्जवल भविष्य के लिए यह बेहतर साबित होगी।
बेस्ट हिंदी कहानी छोटे छोटे बच्चों के लिए ! best hindi story for kids
मृत्यु
का स्मरण:- एक समय की बात है।
किसी गाँव में महात्मा बुद्ध ठहरे हुए थे और अपने दैनिक जीवनशैली के अनुसार सभी
लोगो को उपदेश दे रहे थे। जिसमे वह सभी को जीवन का महत्व व सत्य मार्ग पर चलने का
महत्व समझा रहे थे। महात्मा बुद्ध का जीवन निष्पाप व पवित्र था। उनके जीवन से
प्ररित होकर दूर दूर से लोग उनका उपदेश सुनने व उनसे आर्शीवाद प्राप्त करने आया
करते थे।
उसी गाँव मे एक
जमींदार रहता था। उसका गाँव मे काफी बोलबाला था। उसके पास धन दौलत व शोहरत की कोई
कमी नही थी इसी कारण उसे अपने आप पर बहुत घमण्ड भी था। उसे जब पता चला कि महात्मा
बुद्ध गाँव मे लोगो को उपदेश दे रहे है तो उसने भी वहाँ जाने का मन बनाया।
वह महात्मा के पास
गया तो उसने देखा कि महात्मा बुद्ध वास्तव मे बहुत ज्ञानी पुरूष है उसने पहली बार
ऐसा दिव्य ज्ञानी पुरूष के दर्शन किये थे। उसके मन मे एक शंका थी उसने आखिर मे
महात्मा बुद्ध से कहा कि- हे महात्म्न। आपका जीवन देखकर मुझे बडा आश्चर्य हो रहा
है कि आप पाप रहित जीवन कैसे जी सकते है। मै तो चाहे कितनी भी कोशिश कर लूं मगर
पाप तो ही जाता है चाहे वह जाने अनजाने मे ही क्यों ना हो। अतः मैने जब से आपको
देखा है आपके बारे मै सुना है मै यही सोच रहा हूँ कि आप निष्पाप जीवन कैसे जीते है
कृपा करके मुझे इसका रहस्य बताइये।
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इतना सुनने के
पश्चात भी महात्मा बुद्ध अपनी आँखे बन्द किये हुए थे और कुछ देर बाद उन्होने अपनी
आँखें खोली और बोले। वत्स्, अच्छा हुआ तुम आ गये मै अभी तुम्हारे बारे में ही सोच
रहा था। मै तुमसे एक खास विषय मे बात करना चाहता हूँ।
इतना सुनते ही
जमींदार बोला- कहिए महात्म्न, आप मुझसे क्या बात करना चाहते है। महात्मा बुद्ध बोले- वत्स्, मै जो बात करना चाहता हूँ वह तेरे जीवन से संबंधित है। आज ही सुबह मै जब ध्यान
मुद्रा में बैठा हुआ था तो मुझे तेरे चेहरा दिखाई दिया और मैने देखा कि आज से ठीक
सातवें दिन तेरा जीवन समाप्त हो जायेगा अथवा तेरी मृत्यु हो जायेगी तेरे परिवार जन
बहुत विलाप कर रहे थे और मेरा ध्यान हट गया।
इतना सुनते ही
युवक घबरा गया मानों उसके पैरों तले जमीन खिसक गयी हो।
वह बोला- क्या.....महात्मा
जी वास्तव मे आज सात दिन बाद मैं मर जाऊंगा।
महात्मा बुद्ध
बोले- मेरे स्वपन से तो यही संकेत मिले है। अतः तुम्हे सम्भल कर रहने की आवश्यकता
है। अपनी मरने की खबर सुनकर जमींदार की दिल की धडकन बढ़ गयी आँखों के आगे अंधेरा
महसूस होने लगा हाथ पैर काँपने लगे पुरे शरीर से पसीना छूटने लगा सिर चकराने लगा।
अब जमींदार साहब वहाँ
से सीधा भगवान के मन्दिर गये। भगवान के आगे शीश झुका लिया और कहने लगा- हे प्रभू।
हे ईश्वर आप तो पूरी दुनियाँ का कर्ता धर्ता
है। आप को पता है कि मेरे जीवन के कर्म कैसे है। मैने बहुत पाप किया है लोगों को
बहुत लूटा है गरीबों की मजबूरी का बहुत फायदा उठाया है मगर मैने जीवन मे कभी कोई
धर्म नही किया ना ही कोई नेक काम किया है। मै अपने द्धारा किये गये पापों की
व्याख्या शब्दो मे नही कर सकता आप कृपा करके मुझे कोई मार्ग दिखाये मै अपने पापों
का पश्चाताप करना चाहता हूँ।
जमीदार साहब जब घर
आये तो उनका खाने-पीने, हँसने बोलने मे बिल्कुल भी मन नही
लग रहा था। अब उन्हे अपनी धन-दौलत, शानो-शौकत, यश, वैभव, शोहरत सब फीका लगने लगा था जब कि कल तक उन्हे इन सब घमण्ड था। संसार के वैभव
अब उन्हे आकर्षित नही कर पा रहे थे संसार के सारे ऐशो आराम अब उन्हे निःसार लगने लगे थे।
अब पाप करना तो
दूर पाप करने का विचार भी मन मे नही आ रहा था। धन, दुकान, मकान, पुत्र, पत्नि, परिवार और मित्र कोई भी उसे मृत्यु
से नही बचा सकता था। वह मन ही मन सोचने लगा क्या कोई ऐसा डॉक्टर नही है जो कैप्सूल
देकर मृत्यु को रोक सके क्या कोई ऐसा वकील नही है जो
मृत्यु का स्टे-आर्डर दे सके और उसे रोक सके क्या कोई ऐसा वैज्ञानिक नही है जो
यमराज का आगमन रोक सके।
अब उन्हे अहसास
हुआ कि धर्म ही एक मात्र् ऐसा आधार है जिससे उसके पापो का पश्चाताप हो सकता है।
उसने धर्म का रास्ता अपना लिया सभी जीवो से क्षमा याचना की तथा उनकी दिन रात सेवा
की और अपने मन को प्रभु की भक्ति मे एकाकार कर लिया। खूब दान धर्म किया गरीबो की
सहायता की इस प्रकार उसके जीवन के छः दिन गुजर गये।
सातवें दिन जब
सूर्योदय हुआ तो उसने सूर्य को प्रणाम किया उसे ज्ञात था कि आज सातवां दिन है मगर
उसके मन मे अब मृत्यु का कोई भय नही था। वह बडी प्रसन्नता से ईश्वर की भक्ति मे
लीन था।
इतने मे महात्मा
बुद्ध वहाँ पर आये। उसने महात्मा बुद्ध को देखते ही उनके चरणो मे झुक गया। महात्मा
बु़द्ध बोले- वत्स, सात दिन मे तुमने कितने पाप किये। वह बोला- महात्मन्। पाप करना तो दूर की बात
है मेरे मन मे एक क्षण भी पाप करने का विचार भी उत्पन्न नही हुआ। जब मौत सामने खडी
हो तो मन पाप करने मे कहाँ लगता है। इन छः दिनो में मेरा जीवन ही बदल गया।
सन्त बोले- पवित्र
जीवन जीने का रहस्य भी यही है। मै भी मृत्यु का प्रतिपल स्मरण करता हूँ।
सीखः- इन्सान के
जीवन का मापदण्ड भी उसके कर्मा पर आधारित है। निष्पाप व पवित्र जीवन जीने के लिए
इन्सान को जीवन के मूल्यों को समझना आवश्यक है जब वह पाप पुण्य की सही व्याख्या
समझ लेगा तो उसके हाथों कभी पाप नही होगा और ना ही उसे मौत का भय होगा।
आज इस पोस्ट में हमने बेस्ट हिंदी कहानी
छोटे छोटे बच्चों के लिए में एक मृत्यु का स्मरण नामक कहानी पढ़ी। आपको हमारी कहानी
कैसी लगी ये हमें कमेन्ट में जरुर बताये। share और follow करना ना भूले ताकि लेखक की कलम को बढ़ावा
मिल सके। ऐसी मजेदार कहानियाँ पढने के लिए
motivationdad.com से जुड़े रहे।
कहानी को पूरा पढने के लिए बहुत बहुत धन्यवाद !!!!
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