नमस्कार दोस्तों- मै आपके समक्ष कुछ प्रेरणादायक कहानियाँ पेश करना चाहता हूँ। आप चाहे स्टूडेंट हो या किसी अन्य क्षेत्र में हो, आपको मेरी कहानियाँ जरूर अच्छी लगेगी। आपको मेरी कहानियों से जरूर कुछ सीखने को मिलेगा।
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1.अधिक चतुराई
2.पैसे की करामात
3.चोट कहाँ लगनी चाहिए
अधिक चतुराई
एक समय की बात है। एक राजा था वह काफी धनी व होशियार था।राजा के राजकोष का एक वित्तमंत्री था वह राजा से भी होशियार था अथवा राजा से भी अत्यन्त बुद्धिमान और राजनैतिज्ञ था। वह राजा को नये-नये सुझाव दिया करता था। राजा भी उससे खुश रहते थे कई दिन तो राजा को उसके सुझाव अच्छे लगे मगर वह अब हमेशा राजा की बात काट दिया करता था। भरी सभा में राजा की बात को काट कर अपनी बात न्यायसंगत साबित करने लगा था। अब राजा को यह सब खटकने लगा था क्योंकि राज्य में उसके होशियारी के डंके बजने लगे थे। राज्य की जनता उससे बहुत प्रभावित थी और राजा को यह बात पसंद नही थी उसे अपने वित्तमंत्री की अत्यधिक चतुराई से अपने प्रति असुरक्षा महसूस होने लगी थी। वित्तमंत्री राजा को बहुत मानता था अब एक दिन वित्तमंत्री ने राजा को अपने घर पर दावत पर बुलाया। राजा ने भी दावत के लिए हाँ भर दी और वित्तमंत्री दावत की तैयारियों में लग गया था। उसके पास इतना धन नही था कि वह राजा के हैसियत के अनुसार उसकी खातिरदारी और दावत की व्यवस्था कर सकें अर्थात उसने किसी से कर्जा लेकर राजा के दावत की व्यवस्था की। राजा का रथ जब उसके घर के सामने रूका तो राजा ने देखा उसने अपना घर पुरा सजा रखा था। राजा के आगमन के लिए जमीन पर फूल बिछा रखें थे पुरा घर फूलों से सजा रखा था। चारों ओर सुगंधित महक आ रही थी। राजा जब दावत पर बैठा उसे और हेरानी हुई। उसने राजा के लिए अनेक स्वादिष्ट पकवान बनवायें। राजा को उससे इतनी उम्मीद नही थी और इतने स्वादिष्ट पकवान व भोजन तो राजा के यहाँ भी किसी समारोह मेें नही होता था। अतं में राजा ने भोजन किया और उसकी आवभगत और भोज्य सामग्री की बहुत प्रश्ंसा की। राजा अपने महल की ओर प्रस्थान कर गया। उसके दवारा प्रश्ंसा पाकर वित्तमंत्री बहुत खुश था।
दूसरे ही
दिन राजा ने उसे राजकोष में घोटालें के जुर्म मे कारावास की सजा सुना दी। अब राजा को अपने राजपाठ के प्रति सुरक्षा महसूस होने लगी थी पहले राजा को यह प्रतीत हो रहा था कि वह भरी सभा में उसका अपमान करके अपनी बात को न्यायसंगत साबित करता था इस कारण राज्य की जनता उसे कुछ ज्यादा ही मानने लगी थी राजा को डर था कि कंही वह उसका सिंहासन अथवा राजपाठ ना छिन लें। अब राजा एक दम सुरक्षित महसूस कर रहा था।
सीख- इससे हमे यही सीख मिलती है
कि आप चाहें किसी भी क्षेत्र में या नौकरी पेशें में हो आप चाहे कितने भी बुद्धिमान हो और हो सकता है आप का बाॅस या आपका अधिकार आपसे कम बुद्धिमान हो मगर कभी भी वित्तमंत्री की तरह बिना माँगे या अपने अधिकारी के खिलाफ जाकर अपनी अतिरिक्त बुद्धि का परिचय ना देवें अगर उसे आपसे जलन या असूरक्षा महसूस होने लगी आप पर वह भारी नुकसान दायक सिद्ध हो सकती है।
पैसे की करामात
पैसे की
अपनी कहानी होती है एक लड़का था उसका नाम परस राम था लोग उसे परसू कह कर पुकारते थे वह गरीब घर का था। जो कहता उसका काम कर दिया करता था कभी किसी कों काम के लिए इन्कार नही करता था। बेहद मेहनती लडका था और मेहनती इन्सान धीरे-धीरे मंजिल की तरफ बढता रहता है। अब धीरे-धीरे उसने साईकिल खरीद ली और थोडा बहुत सौदा रखकर बेचने लगा था किसी को उधार भी दे दिया करता था फिर उसने छोटी सी दुकान बना ली। कुछ समय बाद एक बडी दुकान खरीद ली और एक नौकर भी रख लिया था। अब सभी लोग उसको परसया नाम से बुलाने लगे जो उधार लेते थे वह तो बडे प्यार से उसे परसया कहते थे। परसू अब परसया बन चुका था। उसने किसी से नही कहा कि मेरा नाम बदल दो। मगर दुनिया रंग बदलती है कहने की जरूरत नही पडती।
अब कुछ दिन और
बीत गये उसने पास की एक दुकान और खरीद ली थी। वहाँ भी व्यापार चालू कर दिया था व्यापार बडा हुआ तो एक नौकर और रख लिया। एक स्कूटर भी खरीद लिया था कुछ समय पश्चात् उसने घर भी बनवा लिया और उसकी शादी भी हो गयी थी। कुछ वर्ष बाद वह कई दुकानो का मालिक बन गया अब उसकी गिनती अमीर लोगो मे होने लगी थी वह बडा व्यापारी बन चुका था। अब दुनिया उसे परस राम कहने लगी। जो कि उसका पुराना और वास्तविक नाम था। परसू भी गया परसया भी गया अब आ गया परसराम ना किसी से कुछ लिया ना किसी को कुछ दिया। परसू से परसराम बन गया। दुनिया को कहने की जरूरत नहीं होती दुनिया अपने आप समझ जाती है। गरीबी का भी अपना नाम होता है-जगननाथ नाथ अनाथ। अमीरी का भी अपना नाम होता है-परसू-परसया-परसराम। नीतिकार कहता है दुनिया अच्छा बुरा सब जानती है मुँह पर नही कहती पीठ के पीछे सब का खाता खोलती रहती है इसी का नाम दुनिया है यही संसार है। यही पैसे की करामात है।
चोट कहाँ लगनी चाहिए
एक
नगर मे एक सेठ रहता था। जिसके पास एक बहुत बड़़ी मिल थी और वहाँ सैंकडो मजदूर कार्य करते थे वह उनकी जीविका का साधन था। एक दिन अचानक मिल चलते चलते बन्द हो गयी। किसी मशीन मेें कोई खराबी हो गयी थी। लोग इधर उधर भाग रहे थे सभी अपने हिसाब से कोशिश कर रहे थे मगर वह चालू नही हुई। अब सेठ ने नगर के बडे मैकेनिक को बुलाया उसके जाचँ करने पर भी वह चालू नही हुई उसके बाद एक एक करके कई मैकेनिक वहाँ मशीन की खराबी की जाचँ करने आये मगर सभी उसे चालू करने मे असमर्थ थे
इतने में एक
आदमी आया। उसने उस मशीन को ध्यान से देखा और काफी समय देखने के बाद बोला-सेठ जी मै इस मशीन को ठीक कर दूँगा। यह फौरन चालू हो जाऐगी मगर आपको इस काम के दस हजार रूपये देने होंगे। सेठ दुविधा मे पड गया पर उसे मशीन चालू करवानी थी क्योंकि अगर मशीन दो दिन बन्द रह गयी तो उसका लाखों रूपये का नुकसान हो जायेगा। बाजार मेें उसकी इज्जत खराब होगी सौ अलग। आखिर मे सेठ ने कहा मै तुम्हे दस हजार रूपये दूगाँ तुम इस मशीन को चालू कर दो।
अब वह
आदमी अपने काम लग गया। वह एक हथौंड़़ा लाया और एक खास जगह कसकर मारा। हथौंड़े का लगना था कि मशीन धड़-धड़ करके चल पड़ी। सेठ ने यह देखा तो बोला अरे भाई इसमे तो कुछ भी काम नही था। तुम दस हजार रूपये किस बात के मांगते हो। हथौंड़े से चोट तो कोई भी मार सकता है।
उस आदमी ने
कहा सेठ साहब हथौड़े की चोट तो कोई भी मार सकता था पर कितने लोग है जो यह जानते है कि चोट कहाँ मारनी चाहिए।
सेठ निरूत्तर हो
गया। उसने उसे दस हजार रूपये दे दिये।
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