मै आपके समक्ष जो मोटिवेशनल स्टोरी पेश कर रहा हूँ मुझे उम्मीद है कि वह आपके जीवन में लाभदायक सिद्ध होगी आपको इससे जरूर कुछ सीखने को मिलेगा।
3 short motivational story ….
1 अन्धे का पूर्वाग्रह
2 मन का महल
3 मानव की खोपडी
अन्धे का पूर्वाग्रह
( short
motivational story)
एक अंधा आदमी अपने गाँव से किसी आवश्यक कार्य
हेतू रेगिस्तान की यात्रा कर रहा था। संयोग से उसे मार्ग मे एक लंगडे आदमी का साथ मिल
गया। अंधे और लंगडे की यात्रा अब बहुत आसान हो गई क्योंकि अब दोनों एक दूसरे के सहयोग
से रास्ता पार कर रहे थे। साथ साथ यात्रा से दोनो मे मित्रता प्रगाढ़ हो गई। वैसे तो
दोनो साथ ही उठते थे। किन्तु एक दिन सुबह अंधा आदमी जल्दी उठ गया। उसने उठकर जैसे तैसे
अपनी लकडी ढूँढ़ना चाहा। वह हर जगह को टटोलकर देख रहा था। संयोग की बात ऐसी बनी कि भयंकर
कडाके की सर्दी के कारण एक साँप सिकुडकर लकडी की तरह कडा हो गया था। उस अंधे मित्र
ने उस साँप को लकडी समझ कर उठा लिया। वह मन ही मन सोचने लगा कि मेरी लकडी बदल गयी है।
ये शायद मेरे परमात्मा की देन है वह इतना प्रसन्न और आल्हादित था कि उसने परमात्मा
से कहा-हे परमात्मा मै तेरा अनेकों बार धन्यवाद करता हूँ। लगता है
मेरी लकडी तो खो गई है, लेकिन पहले से भी बेहतर और चिकनी लकडी तूने मुझे
दे दी है। मै तेरा यह उपकार सदा याद रखूँगा तेरा यह उपकार मै कभी नही भूल सकता। इतना
कहकर उसने उस चिकनी लकडी से अपने लंगडे मित्र को जगाया।
लंगडा आदमी हडबडाकर उठा और उसने जब अंधे की लकडी
देखी तो वह एकदम घबरा गया तथा बोला- मित्र तुमने
यह हाथ मे क्या पकडा हुआ है। इसे शीघ्र ही छोड दो। यह तो साक्षात् मौत को तुमने पकड
रखा है। जिसे तुमने लकडी समझकर पकड रखा है ये तो जीता जागता साँप है। लगता है यह भयंकर
ठंड के कारण सिकुडकर लकडी जैसा हो गया है। जब इसकी सिकुडन समाप्त हो जायेगी तो ये तुम्हारे
लिए खतरनाक सिद्ध होगा इतना सुनते ही अंधा आग बबूला हो गया और बोला- मित्र तुम झूठ
बोल रहे हो। लगता है कि तुम इस्र्या के कारण मेरी इस सुन्दर और चिकनी लकड़ी को साँप
बता रहे हो। तुम चाहते हो कि मै इस सुन्दर लकडी को छोड दूँ ताकि तुम इसे ले सको । मै
अंधा जरूर हूँ किन्तु ना समझ नही हूँ।
लंगडे आदमी ने उसे समझाते हुए कहा- मित्र तुम पागल
हो गये हो। मुझे तुमसे कोई ईष्र्या नही है। मेरे पास आँख होने से मुझे दिखाई दे रहा
है कि जिसे तुम चिकनी और सुन्दर लकडी बता रहे हो वह एक जानलेवा साँप है। मै तो तेरा
भला चाहता हूँ इसीलिए बार-बार कह रहा हूँ। अब भी मान जा और इस साँप को छोड दे। यह तेरे
जीवन के लिए खतरनाक है। यह सुनकर अंधा आदमी और भी गुस्से से भरकर बोला- मै तेरे जैसे
ईष्र्यालु लोगो के साथ यात्रा नही कर सकता। तुम अपना रास्ता नाप लो और मै अपनी मर्जी
से चला जाऊँगा। इस तरह दोनो के रास्ते अलग हो गये।
कुछ देर बाद जब सूरज निकला और सूर्य की उष्णता
के कारण साँप की सिकुडन समाप्त होने लगी तो साँप के प्राणो मे संचार हुआ। जैसे ही साँप
को होश आया उसने अंधे आदमी को काट लिया। तब जीवन के अन्तिम क्षणो मे अंधे को यह अहसास
हुआ कि लंगडे मित्र की बात बिल्कुल सच थी परन्तु अब पछताये होत क्या जब चिड़ि़या चुग
गई खेत।
यह कहानी हमे संकेत देती है कि समझ बिना का पूर्वाग्रह
व्यक्ति को विनाश की ओर ले जाता है। जैसे अपने पूर्वाग्रह के कारण अंधे ने प्राण गंवाये।
मन का महल
(Short moral
story)
एक बार की बात है। एक नगर मे एक सेठ रहता था।
उसके दो पुत्र थे सेठ काफी धनी था। सेठ ने एक दिन दोनो पुत्रो की परीक्षा लेनी चाही
और उनसे कहा कि अब मै चाहता हूँ कि तुम दोनो को परखकर घर का उत्तरदायित्व सौंप दूं।
देखो मैने तुम दोनो के लिए यह महल बनवाये है। तुम इसे
भरकर मेरी मन की सन्तुष्टि करो। मै तुम दोनो को आठ-आठ आने देता हूँ। मै देखना चाहता
हूँ तुम कौनसी चीज से इसे भरते हो। एक ने आठ आने देकर एक मेहतर को महल कूडे से भर देने
की जिम्मेदारी दी। गाडी वाला मेहतर भी इस बुद्धिमानी पर हैरान था कि संगमरमर के महल
को कूडे से क्यों भरा रहा है। मगर इससे उसे क्या लेना देना। उसने तो उसके कहने के अनुसार
कर दिया। दूसरे ने आठ आने का तेल लाकर पूरे
महल मे दीपक जला दिया। उसके प्रकाश से महल का कोना-कोना जगमगा उठा। दोनो ने ही अपना
अपना महल जब पिता को दिखाया तब उस पहले पुत्र की नादानी पर पिता सिर ठोकने
लगा। दूसरे को सुयोग्य मानकर अपना उत्तराधिकार सौंप दिया।
मानव की खोपडी
(Short motivational
story)
एक समय की बात है एक व्यक्ति भीख माँग रहा था।
वहाँ उसे नारद जी मिले। भिखारी ने चरण स्पर्श किये और कहा मै भीख माँग कर थक गया हूँ
आप मुझ पर कृपा करो। नारद जी को दया आ गयी। उन्होने कुबेरपति को पत्र लिखा और उस भिखारी
से कहा तुम कुबेर के पास जाओ यह पत्र दिखा देना वह तुम्हारा पात्र भर देंगे। नारद जी
का पत्र था इसीलिए कुबेर को वह स्वीकार करना पड़ा। कुबेर की आज्ञा अनुसार उसके पात्र
मे जो चाहिए था वह सब कुछ भर दिया मगर उसका पात्र भरते भरते कुबेर का खजाना खाली हो
गया। वह पात्र अब भी नही भरा। कुबेर के सेवकों ने कहा महाराज गजब हो गया। नारद जी को
विनती करो कि अब पत्र लिखने मे ध्यान रखे। कुछ भी नही रहने दिया। यह पात्र कोई मायावी
लगता है। कुबेर ने आकर देखा तो सारा खजाना खाली था और पात्र नही भरा था। कुबेर ने नारद
को कहा- आप पत्र लिखने से पहले विचार करो। यह पात्र अभी तक नही भरा। नारद जी दंग रह
गये कि यह कैसा पात्र है जो भरता ही नही। वह भिखारी के पास गए और कहा- जरा अपना पात्र
बताना इसमे क्या है जरा उल्टा कर और भिखारी ने उल्टा किया तो वह पात्र नही था मानव
की खोपड़ी थी जो पूरी नही हो रही थी। मानव खोपड़ी कभी भरती ही नही है सारा जगत भर जाए
पर मेरी या आपकी खोपड़ी कभी नही भरती।
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