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नमस्कार दोस्तोः- मुझे उम्मीद है आपको हमारी प्रेरणादायक कहानियाँ काफी पसंद आ रही होगी। आज मै आपके लिए एक बेहतरीन कहानी पेश करने वाला हूँ मुझे उम्मीद है कि आपको यह कहानी बहुत पसंद आयेगी।
hindi stories with moral (हिंदी प्रेरणादायक कहानियाँ)
बैलवाला धनियां:-
एक समय की बात है एक गाँव मे एक
किसान रहता था। जिसका नाम धनियां था। उसके पास एक बैल था और एक छोटा सा खेत था।
धनियां ने अपना खेत किसी के साथ साझे मे जोत रखा था। एक अकाल का वर्ष आया। धनियां
के खेत मे कुछ भी अन्न उत्पन्न नही हुआ और उनके घर की आर्थिक अवस्था बहुत ही दयनीय
हो गयी। उसकी धर्म पत्नि ने धनियां से कहा कि वह कहीं जाकर इस बैल को बेच दे। इसके
अच्छे दाम मिल जायेंगे उससे उनकी घरेलू अवस्था भी सुधर जायेगी और यह मुसीबत का समय
भी टल जायेगा। जब अच्छे दिन आयेंगे तो वह दूसरा बैल खरीद लेंगे।
धनियां अपनी पत्नि की बात से सहमत
हो गये और बैल को लेकर शहर की ओर निकल लिये। रास्ते मे एक जंगल आया। वहाँ चार ठग
रहते थे। ये वहाँ से आने जाने वालों को ठग लिया करते थे यही उनका पेशा था। धनियां
वहाँ से निकल रहा था। उन्होने धनियाँ को बैल के साथ निकलते हुए देखा। उनके मे से
एक आकर बोला कि अरे बैलवाले भैया यह बैल कहाँ ले जा रहे हो।
धनियां ने उनकी बात का तुरन्त जवाब
दिया - कि भैया इसे बेचने शहर ले जा रहा हूँ।
क्या तुम्हे इसे खरीदना है? ठग ने कहा- हाँ,
खरीदना तो है मगर इसकी कीमत कितनी है।
धनियां ने कहा- ऐसे तो यह पुरे ड़ेढ
सौ रूपये का है। मगर बेचने निकला हूँ तो गरज मेरी है। मै तुम्हे इसे सौ रूपये मे
दे दूँगा। इसी बात पर ठग हँसने लगा और बोला- क्या कहा। सौ रूपये वो भी इस बैल का।
इस मरियल बैल का सौ रूपया तुम्हे कौन देगा? देते हो तो पचास रूपये मे दे दो।
बैल की कीमत के विषय मे धनियां और
ठग के बीच मे बहस हो गई। दूसरे ठगों ने आकर पहले वाले ठग का समर्थन दिया। धनियां
नही माना, तब पहले ठन ने सुझाव दिया कि किसी
दूसरे के पास बैल की कीमत करा लेते है। जंगल के पास ही एक झोंपडी थी। उस झोंपडी मे
एक बूढ़ा व्यक्ति बैठा हुआ था पहला ठग बोला कि यह यहाँ का सबसे बुजूर्ग बाबा है
क्यों ना यही हमे बैल की सही कीमत तय करने मे हमारी मदद करे दे।
दोनो के बीच मे तय हुआ कि यह बाबा
जो भी बैल की कीमत तय करेगा उन्हे स्वीकार होगी।
पहले ठग ने बाबा से कहा- बाबा, यह बैलवाला धनियां है। यह अपना बैल बेचना चाहता है यह इसकी कीमत सौ रूपये बता
रहा है। हम इसे खरीदना चाहते है। हमने इसकी कीमत पचास रूपये लगाई है कृपया आप बैल
को देखकर बताइये कि इस बैल की कीमत क्या होनी चाहिए आप जो कीमत बतायेंगे वहीं हमे
स्वीकार होगी।
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ठग-- बैलवाले भैया तुम्हे स्वीकार
है ना। धनियां ने सोचा कि यह बुजूर्ग व्यक्ति झूठ थोडी ही बोलेगा और उसने कहा, हाँ ये जो भी कीमत बतायेंगे वह मुझे स्वीकार होगी।
बूढा बाबा उठकर बाहर गया। उसने बैल
को गौर से देखा और कहा,
यह बैल तो एकदम मरीयल और कमजोर है। इसकी कीमत दस रूपये से अधिक नही हो सकती।
इतना सुनते ही धनियां सन्न रह गया।
काटो तो खून नही?
क्या करे? अब समझ में आया कि ठगों मे फँस गया
है। दस तो दस। जो भी मिलता है, ले लों वरना इससे भी हाथ धोने पडेंगे। दस रूपये लेकर वह घर की तरफ रवाना हो
गया। फिर आगे जाकर छिप कर बैठ गया फिर वापस उसी स्थान पर आकर उस बूढे बाबा और उन
ठगों की बात सुन रहा था तो उसे पता चला कि यह तो इन ठगों का बाप है यानि इनका
सरगना। मन ही मन सोचने लगा कि मै किसके चक्कर मे आ गया। सोचते सोचते अपने गाँव की
ओर चला गया। जब दस रूपये अपनी पत्नि को दिये तो पत्नि ने उसे बहुत जली कटी सुनाई।
धनियां ने निश्चय किया कि वह इन ठगों को और उनके बाप को भी ठगेगा और बदला लेगा।
कुछ दिन बाद धनियां ने अपनी दाढी
मूंछ कटवा कर एक सुन्दर स्त्री का वेश धारण किया। ठगों के आने जाने के मार्ग मे एक
पत्थर पर बैठकर स्त्री की आवाज मे रोने लगा। झोंपडी मे से ठगों ने सुना कि कोई
स्त्री रो रही है। वहाँ जाकर उन्होने स्त्री से पूछा कि क्यों रोती हो, क्या बात है। स्त्री ने रोते हुए कहा- कि संसार मे मेरा कोई नही है। मै दुखी
हूँ मेरा कोई ठिकाना भी नही हैं अब मै कहाँ जाऊं।
अब ठगों ने उसे आश्वासन दिया कि
तुम चिंता मत करो। हम तुम्हे अपने घर ले जायेंगे फिर तुम हम में से जिसको पसंद करो
वह तुम्हारे साथ विवाह करेगा। स्त्री ने कहा- मै तैयार हूँ किन्तु तुम मे से जो भी
आज रात बाहर से एक सुन्दर सोने का हार ले आयेगा, उसके साथ ही मै विवाह करूंगी।
इतना सुनते ही चारों भाई चारों
दिशाओं मे दौडे। सबको हार लेकर जल्दी लौटना था और उससे विवाह करना था। चारो भाई
दृष्टि से दूर हुए कि तुरन्त धनियाँ ने डंडा उठाया और बूढे को मारने लगा। बूढे ने
कहा- तू कौन है और मूझे क्यो मार रही है। स्त्री ने अपना मुख खोलकर कहा कि मुझे
नही पहचाना? मै वह बैलवाला धनियां। याद है ना? तुमने मेरा सौ रूपये का बैल दस रूपये मे ले लिया था। ऐसे तुमने बहुत आदमियों
को ठग कर धन जमा किय होगा। निकाल, नही तो मार मार कर तेरी हड्डी पसली एक कर दूंगा। यह कहकर धनियां ने उसे फिर
मारना चालू किया। जब सहा न गया, तब बूढे ने झोंपडी के एक कोने में गाडें हुए धन को दिखाया। उसको निकालकर
धनियां नौ दो गयारह हो गया।
बूढे व्यक्ति के चारो बेटे सवेरा
होते ही लौट आए। सभी के पास स्त्री को देने के लिए एक तोहफा था। उन्होने देखा कि
स्त्री तो नही है मगर बूढा करहा रहा है। बूढे से पूछा कि वह स्त्री कहाँ है तो
बूढे ने बताया कि वह कोई स्त्री नही थी वह तो बैलवाला धनियां था। बदमाश हमे मूर्ख
बना गया। बूढे ने वह खड्डा दिखाया जिसमें से धनियां धन निकालकर ले गया था। सब उसको
पकड़ने के लिए जाना चाहते थे मगर बूढे ने कहा कि पहले मेरा कोई इलाज तो करो। मै
दर्द से मरे जा रहा हूँ उस दृष्ट ने मुझे इतना मारा कि मेरी हड्डी पसली एक कर दी
मेरे अंग अंग मे आग लगी हुई है। कोई जल्दी जाकर वैध को बुलाकर लाओ।
चारो भाई झोंपडी के बाहर वैध
ढूंढने के लिए निकल गये। कुछ आगे कि तरफ गये तो कुछ पीछे की तरफ। इतने मे उन्होने
देखा कि एक वैध नगर की ओर तेजी से जा रहा है। पीठ पर एक झोला लटकाये है और झोले मे
कोई दवाइयाँ लगती है। उन्होने दौडकर वैध को रोका और बडी ही विनम्रता से उससे
प्रार्थना की कि वह चलकर उनके पिताजी को देखे वह बहुत ही तकलीफ मे है। वैध ने कहा-
कि अभी मै बहुत खास मरीज को देखने नगर जा रहा हूँ। शाम तक आऊंगा। ठगों ने कहा कि
हम आपको बहुत बडी फीस देंगे। आप कृपया करके हमारे साथ चलिए। उनके अत्यन्त निवेदन
पर वैध उनके साथ चलने को तैयार हो गया।
वैध अब ठगों के साथ उनकी झोंपडीं
मे आया। उसने बूढें के हाथ पैर को इधर उधर घुमाकर देखा, उस समय बूढा दर्द से चीखता रहा। वैध ने कहा कि लगता है किसी दृष्ट ने बहुत ही
बेरहमी से मारा हो। मैं अभी मरहम बनाता हूँ। उसको लगाते ही दर्द बन्द हो जायेगा।
बूढा बोला हाँ वैध जी जल्दी मरहम बनाओ मे बहुत पीडा हो रही है। वैध बोला मगर उसके
लिए कुछ खास औषधियाँ बाहर से लानी पडेगी।
वैध ने बडे लडके से कहा कि नगर मे
जाकर मोदी की दुकान से अकली तकली के मूल का तेल ले आओं। दूसरे से कहा कि तुम जंगल
मे जाकर अंट संट के पत्ते ले आओ। तीसरे लडके से कहा कि तुम जाकर खलबत्ता फार्मेसी
से संसासींग की भस्म ले आओ और चौथे से कहा कि तुम दवा की दुकान से डोडाडिंग की
गोली ले आओं। जितनी जल्दी ये चीजें आएंगी उतनी ही जल्दी तुम्हारे बूढे बाप को आराम
मिलेगा। इसी सोच मे सभी अपनी अपनी औषधियाँ लेने निकल गये।
तीनों लडके जैसे ही वहाँ से गये।
यहाँ वैध ने अपना झोला फेंका और डंडा उठाकर फिर से बूढे को पीटने लगा। बूढा दर्द
से करहा रहा था और मार वह बर्दास्त नही कर पा रहा था। बूढे ने वैध से पीटने का
कारण पूछा। धनियां बोला- मुझे नही पहचाना बूढे। मै वही बैलवाला धनियां। निकाल
पैसे। बूढे ने कहा भाई साहब। अब क्यों मारते हो पैसे तो तुम पहले ही ले गये थे। अब
मेरे पास है ही क्या। धनियां ने कहा- तो तू ऐसे नही मानेगा, उसने पीटना चालू किया तो उससे सहा नही गया झट से बूढे ने झोंपडी का दूसरा कोना
दिखाया जहाँ धन गाडा हुआ था। धनियां ने उसे पीटना बन्द किया और धन की पोटली लेकर
तेजी से चलता बना।
लडके जब लौटकर आये तो देखा कि वैध
वहाँ नही है और उनका बाप जोर जोर से दर्द से करहा रहा है। एक तो किसी को औषधि नही
मिली थी, मोदी को अकली तकली कहा तो वह उसे
मारने को दौडा क्योंकि लोग उसको यह कहकर चिढाया करते थे। डोडाडिंग की गोली कहने पर
दवा की दुकान वाला भी मारने दौडा और बोला कि बदमाश मेरा मजाक उडा रहा है।
किसी को कोई भी औषधि नही मिली और
इधर उनके बाप के शरीर पर मार के नए निशान और झोंपडी का दूसरा कोने मे भी खड्डा है।
वह समझ गये कि यह उस बैलवाले धनियां की ही शरारत है। लडको ने मिलकर निश्चय किया कि
अब उसका पता लगाकर ही रहेंगे और पकडकर ऐसा मारेंगे कि उसे छटी का दूध याद आ जाए।
परंतु उसका पता कैसे लगाये। कल किसी जोशी का बुलाकर पूछना चाहिए।
धनियां को समझ मे आ गया था कि अब
ये लोग मेरा पता लगाने के लिए आकाश पाताल एक करेंगे। जोशी के सिवा और कौन है जो
उसका पता दे सकता है। उसने जोशी का वेश धारण किया। सिर पर बडी सी पगडी हाथ मे पोथी
और आँखों मे चश्मा। लडकों ने उसे देखा, तो वह समझ गये कि यही जोशी है। वह कहने लगे जोशी महाराज हमारे घर चले और हमारे
ग्रह देखे।
जोशी महाराज ने कुंडली बनाई। सम
हस्तरेखा देखी। उंगलियों पर गिनकर कहा कि तुम्हारा भाग्य तो अच्छा था मगर कुछ समय
से उस पर राहु की दशा चल रही है। लडकों ने कहा कि आप ठीक कहते है। एक दुष्ट
बैलवाला है वह हमें सता रहा है। महाराज, अब आप हमे यह बताये कि वह बैलवाला हमे
कहाँ मिलेगा तो जोशी ने फिर से गिनकर कहा कि उस दृष्ट को तो मै देख रहा हूँ। वह इस
समय एक वृ़क्ष के नीचे सो रहा है। वह आम का पेड है और यहाँ से दो मील पर एक नदी है
उसके तट पर वह पेड है।
इतना सुनते ही चारों लडके धनियां
को पकडने के लिए एक साथ दौड पडे। वह भूल गये कि बूढा बाप घर पर अकेला है। उनके
जाते ही जोशी महाराज ने अपना नकली वेश निकाल कर उसली रूप दिखाया और डंडा उठाया।
उसको देखते ही बूढा करहा उठा बोला अरे। यह तो वही बैलवाला धनियां है। भाई साहब
मुझे मारना मत। नही तो मै मर जाऊंगा। झोंपडी का वह तीसरा कोना है उसमे धन का चरू
है। आप वह निकाल कर ले जाओं पर मुझे मारना मत। बूढे को अब तक काफी मार पड चुकी थी
इसीलिए धनियां ने वह तीसरा धन का चरू निकाला और लेकर भाग गया। लडके जोशी के दिखाये
हुए स्थान पर पहुँचे। वहाँ उनको कोई नही मिला। अब वह भी समझ गए कि अब कि बार फिर
से वह बेवकूफ बन गयें है और वह जोशी का बच्चा और कोई नही वहीं बैलवाला धनियां ही
है। वह गुस्से मे दौडकर घर की ओर गये और देखा कि जोशी गायब है। वहाँ पोथी,पगडी और चश्मा
पडा है। उन्होने बूढे से पूछा कि कहीं धन तो नही ले गया। बूढे ने तीसरे कोने का
खड्डा दिखाया। उन्होने निश्चय किया कि अब हम सब कभी साथ मे बाहर नही जायेंगे और उस
बैलवाले को पकडकर उसकी हड्डी पसली एक कर देंगे।
कुछ दिन बीत गये। एक दिन बैलवाले
धनियां को रास्ते मे एक बकरी वाला मियां मिला। बकरी वाले मियां की बकरी कोई चोरी
करके ले गया था। बैलवाले धनियां ने उसे समझाया कि यहाँ चार ठग रहते है मेरा बैल भी
ले गये थे। वे ही तुम्हारी बकरी ले गए होंगे। मै अपना बैल ले आया था वैसे तुम अपनी
बकरी ले आना। बहुत तीन पाँच करे तो कहना कि बैलवालें धनियां ने भेजा है। बैलवाले
धनियां ने बकरी वाले को बूढे की झोंपडी का पता दे दिया। बकरीवाला मियां ठगों के घर
पर पहुँचा। भीतर जाकर देखा तो बूढा और चार लडके बैठे थे। मियां ने कहा कि मेरी
बकरी कहाँ छिपाई है?
झट से मेरी बकरी मुझे वापस कर दो।
ठगों ने कहा- बकरी, कौनसी बकरी,
कैसी बकरी और तुम कौन हो भाई।
बकरीवालें मियां ने कहा कि मुझे
बैलवाले धनियां ने भेजा है उसने कहा था कि।
बैलवालें धनियां का नाम सुनते ही
चारों भाई डंडा लेकर बकरीवाले मियां को मारने दौडे। बकरीवाले मियां ने देखा कि
चारों जने ताव मे आ गये है उसे बहुत मारेंगें । वह सिर पर पैर रखकर भागा। चारों
उसके पीछे भागे। पकडो....पकडो... करते करते बहुत दूर निकल गए।
बैलवाला धनियां निकट मे ही एक
वृक्ष पर छिपकर यह तमाशा देख रहा था। जब उसने देखा कि बकरीवाला मियां के पीछे
चारों भाई निकल गये है। वह नीचे उतरा और सीधा झोंपडी मे जाकर डंडा उठाया और बूढे
को पीटने लगा। बूढे ने बैलवाले धनियां को देखा झट से झोंपडी का चैथा कोना भी दिखा दिया। जिसमे धन गाड के रखा था। बूढे ने
कहा कि यह अंतिम घडा है तुम इसे भी ले जाओ। मगर मुझे मत मारना। यह मेरी पाप की
कमाई थी इसीलिए वह तो चली गई साथ मे मेरी हड्डी पसली भी एक करती गयी। अब मै कसम
खाता हूँ कि किसी के साथ कभी ठग नही करूंगा और मेहनत करके रोटी खाऊंगा। धनियां ने
कहा कि मै तेरे जैसे उसे गाडकर ऊपर साँप नही बनूंगा। लोगो की भलाई के कामों मे सब
खर्च कर दूंगा।
शिक्षाः- बुराई और कपट का रास्ता कितना ही
सुखदायक क्यों ना हो। कभी ना कभी उसका परिणाम भुगतना ही पडता है।
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