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नमस्कार दोस्तों-- आपका हमारी कहानियों के चैनल मे स्वागत है आपको यहाँ मनोरंजन से परिपूर्ण और प्रेरणादायक हिन्दी कहानियाँ पढ़ने को मिलेगी। मुझे उम्मीद है कि यह आपके जीवन मे बेहतर साबित होगी। हमारी सभी कहानियों के पात्र और घटनाऐं काल्पनिक है। इसे सिर्फ मनोरंजन के भाव से लिखा गया है अर्थात इसका किसी व्यक्ति या घटना विशेष से कोई सम्बन्ध नही है।
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moral -- हिंदी प्रेरणादायक कहानियाँ
ईसप की जीवनी - (morel story)
यह कहानी उस शख्स की है जिसने
हजारों मुसीबते झेलकर भी एक मुकाम हासिल किया उस शख्स का नाम ईसप था। ईसा के जन्म
से करीब छः सौ साल पहले इथोपिया मे एक बालक का जन्म हुआ। माता पिता ने उसका नाम
ईसप रखा था। ईसप बुद्धिमान था किन्तु सुन्दर नही था। उन्हीं दिनो यूनान ने इथोपिया
पर हमला किया। बहुत दिन तक युद्ध हुआ। इस यु़द्ध मे इथोपिया की पराजय हुई।
यूनानियों ने इथोपिया को जमकर लूटा और वहाँ के हजारों लोगो को गुलाम बनाकर अपने
देश ले आए। इन्ही गुलामो मे ईसप भी था। ईसप कुरूप था इस बात पर उसका मालिक उसे बहुत पीटता था।
एक दिन ईसप वहाँ से भाग खड़ा हुआ। वह महिनों तक
इधर उधर छिपता रहा परन्तु एक दिन जब वह एक नगर मे भीख
माँग रहा था तो उसे पकडकर फिर गुलाम बना लिया। ईसप का दूसरा मालिक अच्छे स्वभाव का
था। वह ईसप की ईमानदारी और बुद्धिमानी पर बहुत प्रसन्न रहता। एक दिन ईसप के किसी
काम से खुश होकर उसके मालिक ने उसे आजाद कर दिया।
ईसप ने बचपन में अपने माता पिता से
बहुत सी कहानियाँ सुनी थी जो उसे अच्छी तरह याद थीं। इथोपिया
से युनान व वर्षो इधर उधर भटकते हुए उसने सैंकडो कहानियाँ सुनकर व खुद गढ़कर याद कर
रखी थी। उस दौर में अखबार, पत्रिकाएं, किताबे, रेडियों, टी.वी. और सिनेमा हॉल नही थे। ईसप गलियों मे घूमता और आवाज लगाता- कहानियाँ
सुन लो, कहानियाँ सुन लो। कहानियाँ सुनने के लिए उसके आस पास बच्चों की भीड लग जाती।
इसप उन्हे गढ गढकर नई नई कहानियाँ सुनाता पुरानी कहानियाँ भी सुनाता। कहानियाँ इतनी रोचक सरस और उसके कहने की शैली इतनी अच्छी होती कि बच्चों के साथ बडे बूढे़ भी बडे
चाव से उसकी कहानियाँ सनते थे।
अपनी कहानियों के कारण ईसप दुनियाँ
भर में मशहूर हो गया। उसे दूर दूर से आमत्रंण मिलने लगे कि वह उनके नगर या राज्य
मे आकर अपनी रोचक कहानियाँ सुनाये। ईसप की ख्याति जब लीडिया के सम्राट क्रोसस को
मिली तो उसने सम्मानपूर्वक ईसप को अपने यहाँ बुलवाया। क्रोसस बुद्धिमान लोगों
कवियों व कलाकारों को बहुत मान सम्मान देता था। क्रोसस ने ईसप को अपना सलाहकार बना
लिया। इस तरह दर दर भटकने वाला ईसप राज दरबारी हो गया।
एक दिन क्रोसस ने अपने दरबार में
ईसप से पूछा- ईसप दुनिया मे सबसे उपयोगी वस्तु कौन
सी होती है- जीभ । ईसप ने जवाब दिया क्योंकि जीभ के बगैर न कोई व्यक्ति खा-पी सकता
है न स्वाद ले सकता है और न वह बोल
सकता है।
और दुनिया मे सबसे खराब चीज क्या
है- राजा ने पूछा।
जीभ। ईसप ने जवाब दिया- क्योंकि
अपनी अच्छी या बुरी जबान से ही व्यक्ति राजपद भी पा सकता है तो अपनी गरदन भी कटवा
सकता है।
राजा क्रोसस ईसप से हर गहन मामले
पर राय-मशविरा करता था। एक बार किसी प्रान्त के लोगो की गरीबी देखकर क्रोसस ने
वहाँ के लोगो की मदद करने की सोची। तब सोने के सिक्के चलते थे। क्रोसस ने अपना
विश्वास पात्र समझकर काफी खजाना ईसप के हाथों मे सौंपकर उसे उस प्रान्त के लोगों
मे बंटवाने के लिए भेजा। लेकिन वहाँ के लोग बेहद लालच करने लगे उन्हे जितनी भी मदद
जाती वे उससे संतुष्ट न होते बल्कि और मदद की माँग करने लगते।
वहाँ के लोगो का ऐसा व्यवहार देखकर ईसप खीझ गया। उसने शेष खजाना राजा क्रोसस के
पास वापस भिजवा दिया। यह बात जब लोगो को मालूम चली तो वह बहुत नाराज हुए और
उन्होने संगठित होकर ईसप को मार दिया।
ईसप भले ही अब जिन्दा नही हो, किन्तु अपनी कहानियों मे वह आज भी
जीवित है। दुनियाँ भर मे उसकी कहानियाँ सदियों से लोकप्रिय है। दुनियाँ भर की लगभग
सभी भाषाओं मे उसकी कहानियाँ छप चुकी है।
ठंठन पाल की कहानी - (hindi short story)
एक समय की बात है एक गाँव मे एक
बनिये का घर था बनिये का एक ही बेटा था जिसका नाम था ठंठन पाल। जब वह बड़ा हुआ और मौहल्ले
मे अन्य लडको के साथ खेलने लगा तो उसे बच्चे ठंठन पाल....ठंठन पाल....कहकर चिढाने
लगे। जब भी वह कहीं जाता या उन बच्चो के पास से गुजरता तो बच्चे उसे ठंठन पाल...ठंठन
पाल...कहकर चिढाते और वह गुस्सा होता। आखिर मे उसने अपने माता पिता से शिकायत की
कि उन्होने उसका नाम ठंठन पाल क्यों रखा। कोई अच्छा सा नाम रख देते ताकि लोग उसे
चिढाते नही जैसे रामपाल, वस्तुपाल, तेजपाल आदि। यह ठंठन पाल कितना
निकम्मा नाम है।
उसने अपने पिताजी से कहा कि लडके
मुझे बहुत चिढाते है आप मेरा नाम बदल दो। पिता ने उसे बहुत समझाया कि नाम का कोई
महत्व नही होता गुणो का महत्व होता है इसीलिए यह नाम बदलने की जिद्द छोड दो।
मगर लडका मानने वाला नही था। उसके
पिता ने उसे कहा जाओ कोई ऐसा नाम ढूँढ लाओ जिसमे जैसा
नाम वैसा काम हो। तुम्हारा नाम बदल देंगे।
किसी अच्छे नाम की तलाश में ठंठन
पाल निकला ही था कि एक लकडी बेचने वाली घर के बाहर ही मिल गयी उसने उससे पूछा कि
तेरा नाम क्या है उसने बताया मेरा नाम लक्ष्मी है। ठंठन पाल ने उसे कहा कि तेरा
नाम लक्ष्मी है फिर भी तू क्यों लकडी बेचती है। उस स्त्री ने जवाब दिया कि जब भूख
लगती है तो लकडी भी बेचनी पड जाती है। ठंठन पाल ने सोचा कि नाम लक्ष्मी और लकडी
बेचती है यह नाम ठीक नही है।
बाजार मे आगे उसे एक भिखारी मिला
वह भीख माँग रहा था। उससे पूछने पर पता चला कि उसका नाम धनपाल है। ठंठल पाल सोच मे
पड गया कि इसका नाम धनपाल है फिर भी भीख क्यों माँग रहा है। यह अच्छा नाम नही है।
नाम धनपाल हो और भीख माँगनी पडे।
ठंठन पाल निराश होकर आगे बढा किसी आदमी की अर्थी जा रही थी उसने किसी से उसके बारे मे पूछा तो पता चला कि
नगर सेठ अमर चंद है जिनकी मृत्यु हो गयी है।
यह नाम ठंठन पाल को बहुत पसंद आ
गया था। अमर चंद इस दुनियाँ से चले गये थे इसीलिए उनका नाम भी खाली पडा था किन्तु
उसे विचार आया कि ये अमर चंद अमर क्यों नही हुए मर क्यों गये।
आखिर मे वह समझ गया कि पिताजी ठीक
ही कहते है कि नाम का कोई महत्व नही होता। फिर उसने अपना वही नाम ठंठन पाल ही रहने
दिया और कहा गया है कि--
लक्ष्मी बेचे लकडी, धनपाल मांगे भीख ।
अमरचंद को मरते देखा, तो ठंठनपाल ही ठीक ।।
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