धन और बुद्धि moral story

 

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नमस्कार दोस्तों- आपका हमारी हिन्दी कहानियों मे स्वागत है अगर आप किसी अच्छी और बेहतरीन कहानी की तलाश मे है तो आपको जानकर खुशी होगी कि हम हर एक कहानी एक से बढ़कर एक है आप हमारी कहानियों पर बने रहिए आपके लिए पेश है हमारी नई कहानी।

 

                                            धन और बुद्धि

       एक बार दो व्यक्ति थे उनके बीच घनिष्ट मित्रता थी एक पर लक्ष्मी की कृपा थी तो दूसरे पर सरस्वती की। एक बार दोनो मे विवाद छिड़ गया। एक धन को बडा बता रहा था तो दूसरा बुद्धि को। दोनों की काफी बहस हो गयी दोनो लडते झगडते राजा के पास गये। दोनो ने अपनी अपनी बात राजा के सम्मुख रखी। राजा ने दोनो की बात सुनी तो राजा का दिमाग चकराने लगा क्योंकि जिसकी बात सुनते थे उन्हें उसी की बात सही लगती थी। राजा ने अपने गले से यह इल्लत लगाना उचित न समझा तथा उन दोनो को रोम के राजा के पास भेज दिया। दोनों वहाँ पहुँचे और रोम के राजा को पत्र दिखाया। रोम के राजा ने पत्र मे लिखे अनुसार दोनो को फाँसी की सजा सुना दी।  दोनो बड़े परेशान हो गये।




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      बुद्धिमान ने धनवान को कहा- तुम कहते थे कि धन बड़ा है अतः अब धन का उपयोग कर के अपने प्राणों की रक्षा करने का प्रयत्न करों। धनवान ने खूब कोशिश की किन्तु किसी भी तरह से उसे सफलता नही मिली। तब उसने थक हार कर कहा- कि भाई मै कुछ नही कर सकता। अतः मृत्यु की घडी मे यही स्वीकार करता हूँ कि धन से प्राणो को नही बचाया जा सकता। अब तुम अपनी करामात दिखाओं तो जाने कि बुद्धि धन से बड़ी है। बुद्धिमान व्यक्ति ने कहा- भाई, इसमे जय पराजय वाली कोई बात नही है। मुख्य बात तो यह है कि हमे अपने  प्राणों की रक्षा कैसे करनी है। अपने प्राणों के बचाव हेतू हमे एक काम करना है जब फाँसी पर चढ़ने का समय आ जाए तब हमें एक दूसरे को आगे ढ़केलना है। बस आगे जो भी करना होगा वह मै सँभाल लूँगा।

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      सैंकड़ो व्यक्तियों का जमघट था। वहाँ उन दोनो को भी पेश किया गया और जब फाँसी का समय आया तो दोनो मे धक्का पेल शुरू हो गयी। एक कह रहा था कि मै पहले मरूंगा तो दूसरा कह रहा था मै पहले मरूंगा। यह नजारा देख लोग दाँतो तले अँगुली दबा रहे थे। उन लोगो ने इस तरह किसी इन्सान के मरने का उत्साह पहली बार देखा। उन दोनो की मरने की उतावली देखते ही बनती थी।

     सारी बात जब वहाँ के राजा तक पहँची तो वह हैरान हुआ। दोनों को बुलाकर इस धक्का पेल का कारण जानना चाहा। तब वह बुद्धिमान व्यक्ति बोला- राजन्, इसका कारण ऐसे वैसे समझ में आ जाये इतना सरल नही है। यह हमारे अक्लमंद राजा की..........। इतना कहकर वह रूक गया।

     रोम के राजा ने अत्यधिक आग्रह किया तो वह बोला- हमारे यहाँ के ज्योतिषियों ने बताया था कि हम दोनो मे से जो पहले मरेगा और जहाँ मरेगा वह उस राज्य के लिए विनाशकारी होगा अर्थात् मै जहाँ पहले मर गया वहाँ बारह वर्ष तक अकाल पड़ेगा और यह जहाँ मरेगा वहाँ भयंकर रोग फेलेगा। अतः मै चाहता हूँ कि मै पहले मर जाऊ ताकि लोग भयंकर रोगो से बच जाये। यह चाहता है कि यह पहले मर जाये ताकि लोग व्यर्थ की भूखमरी अर्थात् अकाल से बच जाये ।हम दोनो ही अपने हिसाब से राज्य की जनता का हित चाहते है।

     इतना सुनते ही रोम का राजा सन्न रह गये। भृकुटी चढ़ाकर बोले- अच्छा तो यह बात है ?  तब बुद्धिमान व्यक्ति ने कहा राजन् आप स्वयं अक्लमंद है। इतना तो आप भी सोच सकते है कि हमें मरवाने के लिए उन्हे यहाँ भेजने की क्या जरूरत थी क्या वहाँ शूली नही थी। बस दुःसंभावना से बचने के लिए ही तो यह सब कुछ किया गया। अब देर न कीजिए राजन्। हमें शीघ् ही फाँसी लगवा दीजिए।

     रोम के राजा ने उस राजा पर खौफ खाते हुए उन दोनो को वापस लौटा दिया साथ मे एक कठोर पत्र भी राजा को देने के लिए कहा। जब दोनो सकुशल अपने राज्य पहुँचे तो अपने राजा को विस्तृत घटना क्रम बताया तो सभी ने इस बात को सहर्ष स्वीकार किया- विद्धान सर्वत्र पूज्यते तथा धन से बुद्धि बड़ी है।

       

        

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