khatu shyam: कौन है खाटू श्याम और क्यों दिया भगवान श्री कृष्ण ने वरदान!
क्या
है शीश के दानी खाटू श्याम जी की पूरी कहानी!
खाटू श्याम जी की भक्ति आजकल घर घर
तक देखी जा रही है आज हम उन्ही बाबा श्री श्याम की बात करने जा रहे है।
श्री श्याम बाबा को कलयुग का अवतार
और श्री कृष्ण का रूप माना जाता है। पौराणिक कथाओं के अनुसार जब महाभारत का काल चल
रहा था लक्षागृह से भागने के पश्चात पाण्डवों ने वन मे अपना जीवनयापन किया और तभी
पाण्डू पुत्र भीम की मुलाकात हिडिम्बा से हुई और उन दोनो का एक पुत्र हुआ जिसका
नाम घटोत्गच था और घटोत्गच का एक पुत्र जिसका नाम बर्बरीक था।
महाभारत के समय सभी वीर क्षत्रिय
योद्धाओं ने महाभारत के युद्ध मे भाग लिया ऐसे मे वह भी एक योद्धा था उसने भी अपनी
माता मोरवी से युद्ध मे भाग लेने कि ईच्छा जताई। माता ने युद्ध मे भाग लेने की
स्वीकृति भी दे दी। मगर उसे माता मोरवी ने दो वचन मांगे पहला वचन यह कि उसके चौखट
पर आये किसी भी ब्राहम्ण को खाली हाथ नही लौटायेगा अर्थात भीक्षा देने से मना नही
करेगा और दूसरा वचन यह कि वह हारे का सहारा बनेगा सिर्फ हारे का ही साथ देगा। माता
मोरवी के इन वचनो को वीर बर्बरीक ने प्रतिज्ञा बना ली।
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जब वह पाण्डु पुत्र भीम और सभी
पाण्डवों से आर्शीवाद लेने पहुँचे तो अपने पौत्र को देखकर सभी बहुत प्रसन्न हुए।
मगर श्रीकृष्ण को उस पर शंका थी। उसने बाताया कि उसने देवी की कठोर तपस्या करके तीन
बाण प्राप्त किया है जिससे की वह एक ही
तीर से महाभारत के योद्धाओं का नाश कर सकता है।
पाण्डवों को ऐसा प्रतीत हुआ कि
शायद वह उनके साथ मिलकर कौरवों से युद्ध लडेगा मगर भगवान श्री कृष्ण ने आशंका जताई
तो उसने अपनी माता के वचन व प्रतिज्ञा के बारे मे बताया और कहा कि पहले वह दूर से
युद्ध का नजारा देखेगा और जो हारता हुआ नजर आयेगा वह उसी का साथ देगा।
यह सुनकर भगवान श्री कृष्ण सहित
सभी पाण्डव चिन्ता मे पड गये। दूसरे ही दिन जब वह युद्ध स्थल की ओर प्रस्थान कर
रहा था तो श्री कृष्ण ने अपनी लीला रची और एक ब्राहम्ण का भेष बनाकर वीर बर्बरीक
के सामने आये।
वह वीर बर्बरीक से बोले कि वत्स
कौन हो और कहाँ जा रहे हो। वीर बर्बरीक बोला मेरा नाम बर्बरीक है मै कुरुछेत्र के
युद्ध स्थल की ओर जा रहा हूँ।
उसकी बात सुन कर श्री कृष्ण हँसे
और बोले मगर वत्स तुम तो एक बालक हो और उस युद्ध मे एक से बढकर एक महान प्रतावी
योद्धा है और विशाल नारयणी सेना है तुम अकेले वहाँ जाकर क्या करोगे।
वीर बर्बरीक बोला- श्री मान मै कि
योद्धा हूँ और वीरता का प्रमाण देना ही मेरी पहचान है और उन समस्त योद्धाओं के पास
मेरे जैसी आलोकिक शक्तियाँ नही है मै चाहूँ तो अपने एक ही बाण के वार से महाभारत
के सभी योद्धाओ का विनाश कर सकता हूँ।
भगवान श्री कृष्ण ने वीर बर्बरीक
की आलोकिक शक्तियों की परीक्षा लेनी चाही और जान बूझकर आशंका जताई और बोले यह कैसे
सम्भव हो सकता है और मै यह कैसे मान लूं।
तभी उसने अपने दिव्य अस्त्र तीन
बाण की कला का जिक्र किया और तब भी श्री कृष्ण ने संदेह जताया तो आखिर मे उसने कहा
कि श्री मान यह जो विशाल पीपल का वृक्ष है इसके सभी पत्तो को मे एक ही बाण के तीर
से निशाना साध सकता हूँ।
इतना कहकर उसने निशाना साधा और
पीपल के सभी पत्तो पर तीर से छेद होने लगे पीपल मे वृक्ष मे हलचल मच गयी इसी दौरान
एक पीपल का टूटा हुआ पत्ता उडता हुआ भगवान श्री कृष्ण की ओर आया। श्री कृष्ण ने
छुपके से वह पत्ता अपने पैरों के नीचे दबा लिया।
कुछ ही क्षण मे जब विशाल पीपल के
वृक्ष के सभी पत्तों पर निशाना साध कर छेद
कर दिया गया तो आखिर मे बर्बरीक का तीर श्री कृष्ण के पैर के पास आकर रूक गया तभी
बर्बरीब बोला- श्री मान मेरे वार का आखिरी परिणाम अभी बाकी है क्यों कि उस विशाल
पीपल के समस्त पत्तो मे से एक पत्ता शायद गलती से आपके पैर के नीचे दब गया।
श्री कृष्ण ने जैसे ही पैर उठाइया
वह आखिरी पत्ता भी तीर से छिद गया। पीपल के सभी पत्तो को एक ही वार मे छलनी देख
श्री कृष्ण को बहुत आश्चर्य हुआ वह जानते थे कि उसने प्रतिज्ञा ली है कि वह हारे
का सहारा बनेगा अर्थात सिर्फ हारने वाले का ही साथ देगा।
वह हर हाल मे पाण्डवों को विजयी
बनाना चाहते थे वह सोच रहे थे कि अगर यह कौरवों को हारता देख उनके पक्ष मे खडा हो
गया तो पाण्डवो पर संकट आ जायेगा और जब पाण्डवों को हारते पायेगा तो यह पाण्डवों
के पक्ष मे खडा हो जायेगा इस प्रकार दोनो पक्षो की सेना का यह अकेला ही विनाश कर
देगा।
इस प्रकार ब्राहम्ण के भेष मे आये
श्री कृष्ण ने उनसे उनका शीश दान मे मांग लिया। यह सुन बर्बरीक भी समझ गये कि यह
कोई साधारण ब्राहम्ण नही है वह मोक्ष प्राप्ति के लिए ही तो साधना कर रहा था उसने
उस ब्राहम्ण से अपना उसली रूप दिखाने के लिए प्रार्थना की कहा उसके पश्चात ही वह
उसे शीश दान देगा।
वीर बर्बरीक की आखिरी इच्छा पुरी
करने के लिए भगवान श्री कृष्ण ने अपना विराट स्वरूप दिखाया फिर बर्बरीक ने तलवार
निकाली और अपना शीश काटकर भगवान श्री कृष्ण को दान दिया।
ऐसी बहादुरी और महादानी बालक को
देख भगवान श्री कृष्ण का मन भर आया।
बर्बरीक ने दान देने से पहले श्री
कृष्ण से प्रार्थना कि और बोला- भगवन् मै एक योद्धा हूँ युद्ध करने आया था युद्ध
तो नही कर सका मगर इन सभी महावीरों को युद्ध करते देखना चाहता हूँ।
इस प्रकार श्री कृष्ण ने उसके शीश
को अमृतपान करवाया और वहीं स्थित एक चट्टान पर उसका शीश रख दिया। वहीं से बर्बरीक
ने पुरा महाभारत का युद्ध अपनी आँखों से देखा।
आखिर मे युद्ध मे पाण्डवों की विजय
हुई। विजयी पाण्डवों मे सभी अपने आप को श्रेष्ठ योद्धा बता रहे थे इस प्रकार उनमे
बहस छिड गयी तो वह श्री कृष्ण से पूछने गये कि बताईये हम मे से कौन सबसे श्रेष्ठ
योद्धा है जिसने महाभारत मे सबसे ज्यादा अपनी वीरता और शौर्य दिखाया जिसके कारण हम
विजयी हुए।
श्री कृष्ण उनकी बात सुनकर बोले
इसका फैसला मै नही कर सकता मगर एक महावीर है जिसने अपनी आँखों से पूरा महाभारत का
युद्ध देखा है इस प्रकार वह सभी उस चट्टान पर रखें बर्बरीक के शीश के पास गये।
बर्बरीक के शीश ने बताया कि सम्पूर्ण महाभारत के युद्ध श्री कृष्ण का सुदर्शन चक्र
नाच नाच कर ताण्डव कर रहा था वही सब पापियों को विनाश कर रहा था और माँ जगदम्बा
रक्तपान कर रही थी तुम सभी जो अपने आप को
महान योद्धा मानते हो, तुम तो बस एक नाम मात्र् जरिया थे।
उसकी यह बात सुनकर पाण्डव श्री
कृष्ण की लीला समझ गये और श्री कृष्ण बर्बरीक की दिव्य दृष्टि देख बहुत प्रसन्न
हुए। श्री कृष्ण ने अपनी कलाये और शक्तियाँ प्रदान करते हुए उन्हे वरदान दिया कि
तुम कलयुग मे मेरे नाम श्याम जो कि माता यशोदा ने उन्हे दिया था उसी नाम से जाने
जाओगे। इस सम्पूर्ण पृथ्वी पर तुम से बडा दानी ना कोई हुआ है ना ही होगा। अपनी माँ
के वचन के अनुसार तुम कलुयग मे हारे का सहारा बनोगे। हर हारा हुआ इन्सान तुम्हारे
दर पर अपने जीवन की सम्पूर्ण इच्छाये पूरी
करेगा, जो तुम्हारे दर पर झोली फैला कर आयेगा वह कभी खाली हाथ नही जायेगा। कलयुग
मे तुम्हारा प्रभाव तेजी से फैलेगा और चारों ओर तुम्हारी जयजयकार होगी।
कहाँ
है खाटू धाम और कब लगता है खाटू श्याम का मेला:-
महाभारत के युद्ध के बाद वीर
बर्बरीक के शीश को रूपवती नदी मे बहाया गया था फिर वहाँ से बहकर वह शीश खाटू
पहुँचा। पौराणिक कथाओं के अनुसार कलयुग मे खाटू के राजा को बाबा श्याम ने स्वप्न
मे दर्शन दिये और उन्हे वहाँ दफन शीश के बारे मे बताया।
जब राजा को खुदाई के दौरान श्याम
बाबा का शीश एक शालिग्राम के रूप मे मिला। उन्होने वहीं उनका मन्दिर बनाया जहाँ आज
खाटू श्याम जी का भव्य मन्दिर है जहाँ खुदाई के दौरान उनका शीश मिला वहीं पर श्याम
कुण्ड स्थित है जहाँ पर मात्र् स्नान करने से सम्पूर्ण पाप और रोगों से मुक्ति मिल
जाती है।
राजस्थान के सीकर जिले मे खाटू धाम
स्थित है वहीँ बाबा श्याम का अद्भूत प्राचीन मन्दिर है वही प्रतिवर्ष फाल्गुन माह
शुक्ल षष्ठी से बारस तक मेला लगता है। पौराणिक कथाओं के अनुसार जब श्री कृष्ण ने
शीश का दान मांगा तो बर्बरीक ने रात भर भजन कीर्तन किया और दूसरे ही दिन सुबह यानी
फाल्गुन शुक्ल द्धादशी को स्नान पूजा करके अपने हाथ से अपना शीश दान दिया।
प्रतिवर्ष इस दिन लाखों की संख्या मे खाटू श्याम बाबा के दर्शन हेतू भक्तो की कतार
लगती है।
खाटू
श्याम का जन्मोत्सव:-
Happy birthday khatu shyam
जिस दिन खुदाई के दौरान श्याम बाबा
का शीश एक शालिग्राम के रूप मे मिला। उसी दिन उनका मन्दिर बनाकर शीश को स्थापित
किया। उस दिन कार्तिक शुक्ल पक्ष की देवउठनी एकादशी थी और उसी दिन को बाबा श्याम
का जन्म दिवस माना जाता है और खाटू श्याम जी का जन्मोत्सव हर वर्ष कार्तिक शुक्ल
पक्ष की देवउठनी एकादशी को बडी धूमधाम से मनाया जाता है। यह दिन भक्तो के लिए बहुत
खास माना जाता है।
मूल मन्दिर की स्थापना 1027 ईस्वी मे रूपसिंह चौहान और उनकी पत्नी नर्मदा कँवर द्वारा करवाया गया था।
मारवाड के शासक ठाकुर के दीवान अभय सिंह ने 1720 ईस्वीं मे
मन्दिर का जीर्णोद्धार करवाया था।
क्यों
कहलाये तीन बाण के कलाधारी:-
बर्बरीके के पास तीन लक्ष्यभेदी
बाण थे उन्होने श्री कृष्ण को अपने तीन बाणों के बारे मे बताया कि पहला बाण जो की
मेरे सभी लक्ष्यों को चिन्हिन करेगा, दूसरा बाण उन लक्ष्यों को चिन्हित करेगा जिन्हे मै बचाना चाहता हूँ और तीसरा
बाण मेरे सभी लक्ष्यों को मेरे पास पहुँचा देगा।
आज भी श्याम बाबा के भक्त बाबा के
मन्दिर मे निशान चढाते है जो कि तीन बाणों का प्रतिक माना जाता है जिससे बाबा
प्रसन्न होते है।
खाटू
श्याम जी को हारे का सहारा क्यों कहते है:-
जब बर्बरीक महाभारत के युद्ध के
लिये रवाना होने वाले थे तो उनकी माता मोरवी ने उनसे वचन लिया कि चाहे कोई भी
परिस्थिति आये उसे हारने वाले का ही साथ देना है अर्थात हारें का सहारा बनना है और
तभी वीर बर्बरीक ने माता के वचन को अपनी प्रतिज्ञा बना ली। इसी कारण कलयुग मे बाबा
श्याम हारे का सहारा कहलाते है।
बाबा श्याम भक्त उन्हे अनेक नामों
से पुकारते है जैसे हारे का सहारा,
मोरवी के लाल, तीन बाणों के कलाधारी,
शीश के दानी, साँवरियां सेठ, लखदतार, सेठो का सेठ आदि।
कहाँ
है चुलकाना धाम और क्या है यहाँ की मान्यता:-
चुलकाना धाम की पावन भूमि पर वीर
बर्बरीक ने अपना शीश दान किया था। इसी पावन भूमि पर भगवान श्री कृष्ण ने महादानी
और वीर बर्बरीक को अपने विराट स्वरूप का दर्शन करावये थे। आज चुलकाना धाम हरियाणा
राज्य के पानीपत जिले मे स्थित है। वहीं बाबा श्याम का एक प्राचीन व भव्य मन्दिर
है।
आज की इस पोस्ट में
हमने shree khatu shyam baba ki kahani पढ़ी। आपको हमारी कहानी कैसी लगी ये हमें कमेन्ट में जरुर बताये। share और follow करना ना भूले ताकि लेखक की कलम को बढ़ावा मिल सके। ऐसी मजेदार कहानियाँ पढने के
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कहानी को पूरा पढने के लिए बहुत बहुत धन्यवाद !!!!!
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